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________________ मंथन ताराचन्द्र के समान भामाशाह भी साहित्यप्रेमी थे, वे भी कवियों का समादर किया करते थे। उस समय का यशस्वी कवि विदुर भामाशाह के आश्रित था । उसने अपने आश्रयदाता के नाम पर ही सं० १६४६ आश्विन शु० १० को 'भामा बावनी' नामक एक रचना रची। यह अकारादि वर्गों से प्रारम्भ होने वाले औपदेशिक पद्यों के रूप में है, इसके प्रारम्भिक ५२ पद्य तो कवि विदुर ने भामाशाह के मुख से ही कहलाये हैं। उन पद्यों के अन्त में 'भामाशाह इस प्रकार कहता है-ऐसा निर्देश किया गया है। इस रचना के प्रारम्भ में भामाशाह के गुरु एवं वंश का परिचय निम्नोक्त दो पद्यों में दिया गया है: 'विदमल गच्छ नागोरि, ज्ञानी देपोल जिसागुर । दया धर्म दारविये देव चौबीस तीर्थकर ॥ मदियावटी पृथ्वीराज सांड भारमल्ल सुणीजै । जसवंत बांधव जोड़ करण कलियाण कहीजै ॥ ताराचन्द्र लखमण रामजिण थितथोमड़ जोड़ी थयो। कुल तिलक अभंग कावेड़िया भामो उजलावण भयो । मूलमंड भारमल्ल - साख कावेड़िया सोहई। पुत्र पौत्र परिवार भडरि भंजयदति मोहई ॥ लखमी नित लख गुणी फालत्या सूरज फुलहल । विस्त रियो जस वास कीर कवि करई कुतूहल ॥ विस्तार घणऊ तिहु खण्ड विचई जगि आलंवणि एह जण । कलिकाल इयई पीथल कुलई भामौ कल्पतुरु भवण ॥x इन पद्यों से भामाशाह के पूर्वज पृथ्वीराज या पीथल का भी पता चलता है। इसी प्रकार भारमल्ल के भ्राता जसवन्त का उल्लेख भी इसमें मिला है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भामाशाह और ताराचन्द्र राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करते हुये भी धर्म और साहित्य के क्षेत्र से बहिर्भूत नहीं थे। इन दोनों की x वीर शासन १ जनवरी १९५३ पृ. ७
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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