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________________ मंथन दी सो वी जी आजकरा अर न्यात म्हे हकसर मालम हुई सो अब तलक माफक दसतुर के थे थारो कराय्या जाजो आगासु थारा बंस को होवेगा जीके तिलक हुवा जावेगा। पंचानेबी हुकम कर दीग्यो है सो वैली तलक थारे होवेगा। प्रवानगी म्हेता सेर सींघ संवत् १९१२ जेठ सुद १५ बुधे" -हिन्दू संसार दीपावली अंक कार्तिक कृ ३ सं० १९८२ वि० इसका अभिप्राय यही है कि भामाशाह के मुख्य वंशधर की यह प्रतिष्ठा चली आती रही कि जब महाजनों में समस्त जाति समुदाय का भोजन आदि होता था, तब सबसे प्रथम उसके तिलक किया जाता था। परन्तु पीछे से महाजनों ने उसके वंशवालों को तिलक करना बन्द कर दिया, तब महाराणा स्वरूप सिंह ने उसके कुल की अच्छी सेवा का स्मरण कर इस विषय की जाँच कराई और आज्ञा दी कि महाजनों की जाति में बावनी ( सारी जाति का भोजन ) तथा चौके का भोजन व सिंहपूजा में पहिले के अनुसार तिलक भामाशाह के मुख्य वंशधर को ही किया जाये--इस विषय का एक परवाना वि० सं० १९१२ ज्येष्ठ सुदी १५ को जयचन्द कुल अणो वीरचन्द कावड़या के नामका दिया, तबसे भामाशाह के मुख्य वंशधर के तिलक होने लगा।” __फिर महाजनों ने महाराणा की उक्त आज्ञा का पालन नहीं किया। जिससे वर्तमान महाराणा साहेब के समय वि० सं० १९५२ कार्तिक सुदी १२ को मुकदमा होकर उसके तिलक किये जाने की आज्ञा दी गयी।"x ____ मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा दिया गया भामाशाह के वंशजों का यह सम्मान भामाशाह के परोपकार के प्रति कृतज्ञता का सूचक है। भामाशाह के ही समान उनके अनुज ताराचन्द्र मी यशस्वी और लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति थे। उन्हें संगीत, साहित्य आदि ललित कलाओं से अतीव प्रेम था। वे इन. कलाओं की सूक्ष्मतम विशेष जानकारी भी रखते थे तथा अन्य कलाकारों को भी. x उदयपुर का इतिहास जिल्द १ पृष्ठ ४७५-४७६ ।
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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