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________________ भामाशाह अमरसिंह-( नैनूराम को देख कर ) तुम्हारी कीतू उत्तर देने के लिये अब इस लोक में नहीं । यदि तुम्हें भी उसके पथ का अनुसरण नहीं करना है, तो शीघ्र ही भाग जाओ। (कीतू का रक्त-सिक्त एक वस्त्र चिह्न स्वरूप उठा नैनूराम का शीघ्रता से पलायन ) पटाक्षेप दृश्य ५ स्थान - सादड़ी का वहिर्भाग ( ताराचन्द्र की चार पत्नियां, षट गायिकाएँ, नैनूराम, उसकी पत्नी, ताराचन्द्र की फूफी, उसका पति, एक यवन औलिया, ताराचंद्र की घोड़ी और ताराचंद्र आदि की क्रमशः आगमन और एक विशाल चिता सृजन का उपक्रम ) नैनूराम - ( चिता कर काष्ठ रखते हुये ताराचंद्र से ) स्वामिन्! आपके अग्रज भामाशाह तथा आपने मेवाड़ - उद्धार के लिये इतना महान् त्याग किया और मेवाड़ के भावी उत्तराधिकारी अमरसिंह ने उसका यह उपहार दिया । ताराचंद्र—नैनूराम ! अमरसिंह की यह कृतघ्नता उन्हीं के लिये घातक सिद्ध होगी । राज लक्ष्मी कभी उनसे सन्तुष्ट नहीं रह सकती । यह अनीति मेवाड़ राज्य के पतन की भूमिका बन कर रहेगी । केतकी - आपकी भविष्यवाणी सत्य होकर रहेगी, यदि अन्य कोई होता तो इस अनीतिका प्रतिशोध लिये बिना न रहता । ताराचन्द्र -- हमने आज तक जिसे अपना स्वामी माना है, उससे प्रतिशोध लेकर हम अपनी स्वामिभक्ति को कलंकित नहीं करेंगे । १५५
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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