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भामाशाह
कीतू - समझती हूं, वह भीषण परिणाम मृत्यु से अधिक नहीं होगा ।
अमरसिंह—क्या वह ताराचन्द्र तुम्हें जीवनसे भी अधिक प्रिय है ? कौतू - अवश्य ! आदर्शवादी नारी जिसे अपना हृदय दे देती है, उसके साथ विश्वासघात नहीं करती ।
अमरसिंह—एक साधारण कुल में जन्म लेकर आदर्शवादी बनना बुद्धिमत्ता नहीं । मेरा प्रम प्रस्ताव स्वीकार कर राज- बध बनने में ही तुम्हारी बुद्धिमानी है।
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कीतू - राज-वधू बनाने का प्रलोभन मुझे विचलित नहीं कर सकता । निश्चय की रक्षा में यम-वधू बनकर भी मुझे सन्तोष होगा । अमरसिंह - तुम-सी मूर्खा अन्य नारी मैंने नहीं देखी, जो मेरे प्रेम प्रस्ताव को ठुकराने का साहस कर सके । तुम्हें एक घड़ी का समय और देता हूं | इसमें अपने हितको भली प्रकार विचार लो
कीतू - मुझे कुछ नहीं विचारना है, बिना विचारे मैं कोई निश्चय नहीं करती और निश्चय कर चुकने पर उस पर विचार नहीं करती । अमर सिंहइ-ज्ञात होता है तुम्हें मरने की इच्छा हो रही है । यदि तुम यही चाहती हो, तो मैं इसका भी प्रबन्ध कर चुका हूं ।
कीतू - यह जानकर मुझे प्रसन्नता है । तुम्हारे प्रेमदान से मृत्युदान मुझे प्रिय है । ( बक्ष से अञ्चल हटाते हुये ) लो, अपना मनोरथ पूर्ण करो ।
( अमरसिंह द्वारा करतल ध्वनि, बृक्षकी ओर से नग्न कृपाण लिये एक क्रूराकृति सेवक का प्रवेश, स्वामी का संकेत पा कीतू पर प्रहार, एक चीख मारते हुये कीतू का भू-पतन, चीख सुनकर 'कीतू' 'कीतू' चिल्लाते हुये नैनूराम का प्रवेश )
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