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भामाशाह
अमरसिंह-नहीं, ऐसा नहीं । तुम अपनी सम्मति निस्संकोच दो, यदि उचित प्रतीत हुई तो अवश्य मानूंगा। ___ मित्र-यदि मानने को तत्पर हो, तो प्रथम ताराचन्द्र से उस सुन्दरी की याचना करो। यदि वह दे दे तो ठीक, अन्यथा जैसा तुम समझो वैसा करना। ___ अमरसिंह-मैं तुम्हें बचन दे चुका हूं, अतः यह प्रयत्न अवश्य करूंगा। पर आशा नहीं कि ताराचन्द्र इतनी सरलता से वह सुन्दरी मुझे दे देगा। मित्र-आशा भले न हो, पर प्रयत्न करना कर्त्तव्य है।
अमरसिंह-यदि याचना से ताराचन्द्र ने कीतू मुझे न दी तो मैं अवश्य ही उसे बलात् पकड़ मगवाऊंगा और अपनी प्रेमिका बनने के लिये वाध्य करूंगा। मेरा अनुरोध ठुकरानेके दूसरे ही क्षण उसका शव पृथ्वी पर पड़ा दिखेगा।
मित्र-इतना कठोर संकल्प मत कीजिये, इसे कुछ कोमल बनाइये।
अमरसिंह-नहीं, अब इस निश्चय में कोई संशोधन संभव नहीं । मित्र ! क्षमा करना, मैं अब तुमसे बिदा लेना चाहता हूं। कारण मुझे भय है कि कहीं तुम्हारी संगति मेरे संकल्पकी दृढ़ता को शिथिल न कर दे।
मित्र-जैसी तुम्हारी इच्छा। ( अमरसिंह का गमन)
पटाक्षेप