SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामाशाह अमरसिंह-हाँ, उसे घटना कहा जा सकता है । तुम मेरे अन्तरंग मित्र हो और अन्तरंग मित्र से कुछ भी गोपनीय नहीं होता । लो, सुनो । मन्त्री भामाशाह का जो सहोदर सादड़ी में रहता है, उसके यहां कीतू नामकी एक सुन्दरी है । जबसे मैंने उसकी छवि की प्रशंसा सुनी है, तभी से उसे अपनी प्रेमिका बनाने की लालसा बलवती हो रही है । पर दाजीराज के भय से उसे साकार नहीं कर सकता। मित्र-कुमार ! एक आदर्श महाराणा के पुत्र होकर तुम्हें ऐसी साधारण स्त्रियों पर मुग्ध नहीं होना चाहिये। अमरसिंह-क्या करूं ? जब से उसके रूप का अतिशय मैने सुना है, तभी से मेरा हृदय मेरे वश में नहीं है। वह उसे पाने के लिये मीनवत् छटपटा रहा है। मित्र-इतना अधीर होने की आवश्यकता नहीं, धैर्य से असम्भव भी सम्भव हो जाता है। अतः धैर्य का अवलम्बन ही श्रेयस्कर है। अमरसिंह-पंचवाण के प्रहार से जर्जर मेरे हृदय में धैर्य का भार वहन करने की क्षमता नहीं। ___ मित्र-युवराज ! आज तुम बहक गये हो । पर मान लो यदि तुम उसे अपनी प्रेमिका बनाने में असफल रहे तो क्या होगा? . अमरसिंह-यदि मैं उसे अपनी प्रेमिका नहीं बना सका तो यमराजकी प्रेमिका अवश्य बना दूंगा । पर वैश्य ताराचन्द्र मेरी अभीष्ट वस्तु का उपयोग करे, और मैं क्षत्रिय पुत्र होकर इसे जड़वत् देखें, यह सुझसे न हो सकेगा। मित्र-कुमार ! आज अविवेकने तुम पर अधिकार जमा लिया है, अतः तुम्हें सम्मति न देना ही उचित है ।
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy