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________________ अङ्क ७ दृश्य १ स्थान --सादरी में ताराचन्द्र का निवास समय-सन्ध्या ( ताराचन्द्र और नैनूराम ) ताराचन्द्र-जिस दिन से राजपूत-यवन-संग्राम प्रारम्भ हुवा, उस दिन से कभी संगीत-सुधा से मनोरंजन करने का अवसर नहीं मिला। अहर्निश की युद्ध-विभीषिका से सौन्दर्य-परीक्षण का अभ्यास भी लुप्तप्राय हो गया है । अब इस शान्ति-कालमें कला-प्रेम की शुष्क वाटिका पुनः सरस करना है। नैनूराम-अवश्य करिये, नियति के क्रम इस प्रकार ही चलते हैं। दुःख के उपरान्त सुख, विरह के अनन्तर मिलन, रुदन के पश्चात् हास्य-यही जीवन-क्रम है और अब कला तथा सौन्दर्य के उपभोग का उपयुक्त समय भी है। ताराचन्द्र-यही सुयोग देख मैं अपनी विगत जीवन-चर्या की पुनरावृत्ति कर रहा हूं, आज से ही आनन्दमय जीवन का श्रीगणेश किया जाये । जाओ, मेरी पूर्वनियुक्त गायिकाओं को ले आओ। (नैनूराम का गमन और क्षणोपरान्त ६ गायिकाओं के साथ प्रवेश) ताराचंद्र-( गायिकाओं से ) एक युग के उपरान्त इस संगीत-गोष्ठी १४४
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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