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________________ मंथन सम्यक् चन्दनचतुष्किकोपरि संस्थाप्य संस्मृतो देवस्तेनाष्टदशकोटि धनं तत्र प्रकटित कृतं।"x उक्त पट्टावली की इन पंक्तियों से यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाता है कि भोमा नाहटा के यहाँ दक्षिणावर्त शंख रहने से १८ कोटि धनराशि प्रकट हुई थी, पर अपनी भावी पुत्री का विवाह सम्बन्ध भारमल्ल कावड़िया के पुत्र भामाशाह के साथ करने के निमित्त श्रीफल के स्थान में दक्षिणावर्त शंख भारमल्ल कावड़िया को दे देने से उसके यहाँ भी १८ कोटि धनराशि प्रकट हो गयी। निस्सन्देह यह अनुश्रुति भामाशाह को जन्मजात महापुरुष सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है। मेवाड़ के अमूल्य ऐतिहासिक ग्रन्थ 'वीर विनोद' में पृष्ठ २५१ पर भामाशाह का जन्मकाल 'सं० १६०४ आषाढ़ शुक्ला १०(हि०९५४ ता० जमादियुल अब्बल ई० १५४७ ता० २८ जन सोमबार बतलाया गया है। इनका यह जन्म भारमल के लिये शुभ सूचक हुआ। ठीक ही है, योग्य संतान की प्राप्ति पिता के अभ्युदय का निमित्त बनती है । जब ये छः वर्ष के थे, तभी 'वि० १६१० (हि. ९६० ई० १५५३ ) में महाराणा उदयसिंह ने भामाशाह के बाप भारमल कावड़िया को अलवर से बुला कर एक लाख का पट्टा वख्शा था । यहीं से भामाशाह के वंश की समुन्नति प्रारम्भ होती है। मेवाड़ के महाराणा ने भारमल को केवल १ लाख का पट्टा ही नहीं बख्शा था वरन् 'रणथम्भौर' का किलेदार भी नियुक्त किया था। पीछे से जब हाड़ा सूरज वृन्द लाला वहां का किलेदार नियुक्त हुआ, उस समय भी बहुत सा काम भारमल के ही हाथ में था। भारमल्ल अपने जीवन के पूर्व भाग में तपागच्छ के अनुयायी रहे हैं, पर सं० १६१६ में देवागर से प्रभावित हो लुंका बने। इस कथन की पुष्टि पूर्व उल्लिखित पट्टावली के निम्नांश से होती है। x वीर शासन १ जनवरी १९५३ पृष्ठ ७ । राजपूताने के जैन वीर पृष्ठ ९६ + वीर विनोद पृष्ठ ६८। • राजपूताने के जैन वीर पृ० ८० .
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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