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भामाशाह राजकुमारी-तुम रोटी दे दो, पुनः मैं उसे खाकर और निर्भर का जल पीकर सो जाऊंगी।
पद्मा-( एक शिला के नीचे से आधी रोटी निकाल कर राजकुमारी को देते हुए) नहीं मानती, ले, मुझे क्या करना है ?
राजकुमारी-( रोटी लेकर ) मां । इस पर घृत चुपड़ दो। तृण की रोटी रूखी नहीं भाती। ___ पद्मा-( नेत्रों में अश्रु भर कर ) बेटी! यहां वन में घृत कहां ? इसे ऐसे ही खाले और पुनः उस निर्मर से जल पी लेना।
( राजकुमारी द्वारा विवश हो रूखी ही रोटी का भक्षणारम्भ, ग्रास के मुख तक पहुंचने के पूर्व ही एक वन विलाव का आगमन, और रोटी छीन कर झाड़ियों की ओर पलायन, रोटी छिन जाने से राजकुमारी की लम्बी चीख, क्रंदन से महा-- राणा का जागरण)
प्रताप सिंह-( राजकुमारी को गोद में उठा कर ) अरे ! अरे !! क्या हुआ ? बतला बेटी ! क्या बात है ? तू क्यों रोदन कर रही है ?
(राणा के प्रश्न करने पर भी राजकुमारी का मौन, केवल अंगुली से विलाव की ओर संकेत, परिस्थिति समझने में मेवाड़-उद्धारकी चिन्ता में लीन प्रताप की असमर्थता ) ___ पद्मा--( रुदन पूर्वक ) प्राणनाथ ! यह भूखी थी, खाने की कोई सामग्री थी नहीं। केवल आधी रोटी थी, वही मैंने उसे अभी-अभी इसे दी। रोटी लेकर इसके जाने पर क्षण भर उपरान्त ही इसकी चीख सुन पड़ी। अब देखती हूं कि इसके हाथमें वह रोटी भी नहीं । ( राजकुमारी से ) बतला बेटी ! तेरी रोटी कौन ले गया ? (प्रश्न सुन रोटी खाकर आनन्द से बैठे हुए विलाव की ओर राजकुमारी का संकेत).
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