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________________ मंथन इनके पूर्वजों का वृत्तांत लिखते हुए सेवग जेठ मल ने कहा है-'भामाशाह का पड़दादा चांदा कावड़िया जो राय की गोत्र ओसवाल दिल्ली का रहने वाला था, उसके बाप-दादे बादशाह की खफगी के कारण लड़ाई में मारे गये थे, उस वक्त वह बच्चा ही था । इसीलिये उसको कावड़ में डाल कर मेवाड़ लाये। इससे उसका और उसकी सन्तान का नाम 'कावड़िया' हो गया। चांदा का बेटा तीड़ा और तीड़ा का भारमल हुआ। ये लोग बादशाहों के यहां कोठारी और कामदार थे और उदयपुर में दीवान हो गये थे। दीवान होने के पहिले भी इन लोगों के पास बहुत धन था। इसीसे ये शाह कहलाते थे।x उपयुक्त उद्धरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भामाशाह के पूर्वज उच्चकुलीन, राज्य-प्रतिष्ठित और धनीमानी रहे हैं। पर भामाशाह के समय से ही उनके वंश की प्रतिष्ठा और सम्पत्तिशीलता अभ्युन्नति की चरम सीमा तक पहुंच सकी थी । इसका कारण भामाशाह का जन्मजात महापुरुष होनी ही कहा जा सकता है। वस्तुतः मेवाड़-उद्धार के लिये महाराणा प्रतापसिंह को अतुल धनराशि का दान उनके महापुरुष कहलाने का कारण नहीं रहा, पर उनका महापुरुषत्व ही उनके इस अनुपमेय दान का कारण रहा है। मेरा यह मत केवल भावुक कवि-हृदय की कल्पनामात्र नहीं है, सत्य है। उनके जन्म की एक घटना भी मेरे इस कथन की अकाट्य पुष्टि करती है। जिसका यहाँ उल्लेख कर देना अनावश्यक न होगा। बीकानेर के यशस्वी एतिहासिक विद्वान् श्री अगरचन्द्र जी नोहटा ने 'वीर शासन' में 'भामाशाह विषयक जिज्ञासाओं का समाधान' शीर्षक जो लेखमाला प्रकाशित करायी थी, उसमें आपने इस विषय की पुष्टि में दो पट्टावलियाँ भी उद्धत की हैं। ये पट्टावलियाँ पहली शती में रची गयी हैं । अतः भामाशाह के विषय में प्रचलित उस समय तक की अनुश्रुतियों का बोध इनसे भलीभाँति हो जाता है। इन पट्टावलियों में भामाशाह के अष्टादश कोटि के स्वामी होने का कारण उन्हें दक्षिणावर्त शंख का प्राप्त होना बतलाया गया है। इन पट्टावलियों x वीर शासन १६ दिसम्बर १६५२ पृ. ७
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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