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मंथन
इसी लज्जा को आंशिक रूप में दूर करने का प्रयास प्रस्तुत नाट्य-ग्रन्थ में किया गया है ।
मैं न कोई इतिहासवेत्ता हूं' और न कोई शोधक | इतिहास के अध्ययन का सुयोग मुझे मिल न सका और शोध जैसा दुस्साध्य कार्य मेरी अल्प शक्ति से परे रहा है । पर भामाशाह विषयक जनसाधारण की अज्ञानता मुझे चिरकाल से मौन आदेश देती रही है, जिसकी उपेक्षा का साहस मेरी अन्तरात्मा नहीं कर सकी और मुझे इस दुष्कर कार्य में जुटना पड़ा है ।
यद्यपि मुझमें उस योग्यता का सर्वथा अभाव है, जो ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिये आवश्यक होती है, पर विद्वज्जनों का चिर मौन ही मुझ अज्ञानी की इस अनधिकार चेष्टा का कारण है । सोचता हूं, महान् तेजस्वी दिननाथ की कृपा न होने पर घुमृत्तिका के दीप को ही अपनी क्षीण आभा द्वारा अन्धकार से संग्राम करना पड़ता है । मेरा यह प्रयास भी सूर्य के समान न सही, मृत्तिका के दीप के समान ही भामाशाह विषयक अज्ञानता को दूर कर सकेगा - ऐसा मेरा आत्मविश्वास है ।
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जब भामाशाह पर कुछ लिखने का संकल्प ही कर बैठा, तो उनके विषय में कुछ जानकारी भी अपेक्षित हुई । फल स्वरूप उपलब्ध ग्रंथों के पृष्ठ पलटे । परिचित विद्वज्जनों से पत्र व्यवहार किया, सभी ने यथासम्भव सहयोग दे मुझे प्रोत्साहित करने की कृपा की। गुरुजनों ने अपनी स्नेहसिक्त वाणी से अशीष दी और मित्रों ने अपने उत्साहवर्द्धक वाक्यों से प्रेरणा । यह प्रोत्साहन का सम्बल पाकर मेरे साहस को आगे बढ़ने की सूझी। कौतूहलपूर्वक आगे बढ़ने पर देखा कि इतिहास-रूप क्षीरसागर में भामाशाह रूप रत्न एक कोने में पड़ा अन्धकूप से बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहा है । मैंने अपनी प्रतिभा की लघु मथानी से विशाल क्षीरसागर का मन्थन आरम्भ कर दिया । मन्थन करने पर भामाशाह के विषयमें जो भी सार वस्तु उपलब्ध हुई, उसे यहां दे देना अप्रासंगिक न होगा | 'भामाशाह' का जन्म 'कावड़या' संज्ञक ओसवाल जैन कुल में हुआ था । * राजपुताने के जैन वीर पृ० ८०
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