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भामाशाह
राजनीतिपारङ्गत मालव- नरेश !
पदलोलुपी अनेक राजपूत - नरेशोंने अपनी स्वतंत्रता यवनसम्राट के हाथ बेंच दी हैं । पर प्रणवीर महाराणा प्रतापसिंह ने अकबर की दासता स्वीकार न करने का दृढ़ संकल्प किया है । वे देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा में प्राणपण से जुटे हैं। ऐसी दशा में उनका सहायक बनना प्रत्येक भारतीय नरेश का कर्त्तव्य है । आशा है आप अपने इस कर्त्तव्य के औचित्य का अनुभव कर स्वतन्त्रतासंग्राम के निमित्त अधिकाधिक निधि प्रदान करेंगे । अन्यथा हमें अपनी कार्य-सिद्धि के लिए अन्य उपाय का प्रयोग करना पड़ेगा; जिससे कदाचित् मालवा की शांति संकट में पड़े ।
- भामाशाह
मालवेंद्र - ( पत्र सुनकर ) भामाशाह की यह उद्दण्डता ? हमें धमकी देकर धन ऐंठना चाहते हैं ? नहीं, मैं कदापि धन देकर अपनी हीनता का प्रदर्शन न करूंगा । वरन् अपने पराक्रमसे इन्हें दण्डित कर इस उद्दण्डता का फल चखाऊंगा । मंत्रिवर ! लिखिये, मालवेन्द्र से किसी भी प्रकार की सहायता मिलना असम्भव है । यदि वे अपने को सकुशल रखना चाहते हैं तो जैसे आये हैं वैसे ही चुपचाप लौट जायें । अन्यथा मालवी सेनाबल प्रयोग कर उन्हें राज्य की सीमा से बाहर कर देगी ।
मंत्री - अन्नदाता ! इतनी उत्तेजना की आवश्यकता नहीं, जयेछुक नृप की नीति और शक्ति ये दो भुजाएं हैं। इन दोनों में नीति
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