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भामाशाह प्रयोग करना है। कारण पौरुष ही दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने में समर्थ है।
भामाशाह-तुम्हारा कथन अन्यथा नहीं, पर भाग्य और पौरुष सफलता-रूप र थ के दो चक्र हैं। भाग्य-चक्र का संचालन नियति करती है और पौरुष-चक्र का संचालन पुरुष । इस नियम के अनुसार ही हम पौरुष की परीक्षा कर रहे हैं। अब कहो, मालवा-नरेश से धन प्राप्त करने के लिये किन उपायों का प्रयोग किया जाये ?
ताराचन्द्र-इस विषय में मेरा विचार है कि दूत द्वारा उन्हें एक पत्र भेजकर अपना अभिप्राय व्यक्त करें, अभिप्राय ज्ञात होने पर सम्भवतः वे कुछ सम्पत्ति अवश्य मेवाड़-उद्धार के निमित्त दे देंगे।
भामाशाह-यदि पत्र-मात्र प्रेषित करने से अभीष्ट की सिद्धि हो सके तो कहना ही क्या ? गुड़ खिलाने से ही यदि मृत्यु संभव हो तो विष प्रयोग करने की आवश्यकता ही क्या ? सर्वप्रथम यही प्रयत्न कर देखना चाहिये । यदि लेखनी का प्रयास निष्फल हुआ तो फिर कृपाण की सहायता ली जायेगी। जाओ, शिविर से लेखन-सामग्री लाओ। मैं इसी समय एक पत्र मालवेन्द्र को प्रेषित करता हूं।
( ताराचन्द्र द्वारा मसि-पत्रि, लेखनी आदि का आनयन)
भामाशाह-( मसि-पात्र में लेखनी डूबोते हुए ) देखो, मैं जब तक पत्र लिख रहा हूं, तब तक एक चतुर दूत को बुलाओ, जो पूर्ण सावधानी के साथ हमारा पत्र मालवा-नरेश तक पहुंचा सके ।
( ताराचन्द्र का गमन और भामाशाह का पत्र लेखन, क्षणोपरान्त दूत के साथ ताराचन्द्र का प्रवेश )
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