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भामाशाह
आभ्यन्तर शत्रुओं का विजेता हो सकता है । कर्मशूर ही धर्मशूर बन सकता है | बोलो, अब तो युद्ध में भाग लेने को तत्पर हो न ?
ताराचन्द्र — तत्पर ही नहीं, कटिबद्ध हूं । अब मैं संकल्प करता हूं कि आमरण मेवाड़ - रक्षा के लिये कर्त्तव्यशील रहूंगा ।
भामाशाह - तुम्हारे इस संकल्प से मुझे आह्लाद है ।
पटाक्षेप
दृश्य ४
स्थान - भामाशाह का शयनागार ।
( युद्धारम्भ की पूर्व रात्रि का तृतीय प्रहर, विश्रामोसन पर भामाशाह और उनके पार्श्व में ही मनोरमा )
भामाशाह - प्रिये ! मानसिंह का दुस्साहस देखो कि अपनी ही मातृभूमि पर आक्रमण करने आया है। जिस भू की पुण्यरज से उसे अपना ललाट अलंकृत करना चाहिये, उसी भू को यवन सेना के चरणों से कुचलवा रहा है ।
मनोरमा - ठीक कहते हैं, मुझे भी उसकी मूर्खता देखकर विस्मय होता है । कहिये, उसकी सेना यहां से कितनी दूर है ?
भामाशाह - अधिक दूर नहीं प्रिये ! खमनौर के निकट ही रक्त तलैया पर वह पूर्ण दल बल के साथ ठहरा है । प्रभात होते ही दोनों दलों में लोमहर्षक युद्ध होगा। ओफ ! इस युद्ध कालमें तुम्हारी चिंता करने का भी अवकाश न पा सकूंगा। इसका मुझे अत्यन्त खेद हो रहा है।
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