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भामाशाह के कण-कण पर हमारी सेना का अधिकार होगा। राणा कहलाने बाले प्रताप की दशा रंक से भी दयनीय होगी। तब उन्हें ज्ञात होगा कि शिरोवेदनाके मिथ्या अभिनय की औषधि कितनी मूल्यमयी पड़ी।
( सहसा प्रतापसिंह का प्रवेश )
प्रतापसिंह-( दक्षिण चरण आगे कर और तर्जनी उठा कर ) अकबर की कृपा पर पलने वाले श्वान ! सिंह को अपनी कन्दरा में सुप्त समझ क्यों व्यर्थ भोंक रहा है ? कदाचित् तू सोचता है कि यह गीदड़भभकी मेवाड़-केशरीके सिद्धान्तोंको भयभीतकर देगी ? पर ऐसा सोचना शुष्क रजकणों से तेल निकालने के समान मूर्खता है । यवनदास ! तेरे साथ भोजन कर मैं निष्कलंक कुल को कलंकित नहीं कर सकता। कुलांगार ! भोजन दूर, तेरा स्पर्शित जल ग्रहण करना भी प्रताप के सिद्धान्त-विरुद्ध है । यदि तुझे क्षुधावेदना सता रही है तो सामने रखे भोजन से उसकी शान्ति कर, कदाचित बधना के जल की लालसा हो तो उसकी प्राप्ति यहां सम्भव नहीं और युद्ध का भय दिखाना अपने काल को ही निमन्त्रण देना है। यदि प्रताप के खड्ग से सुहाग रात मनाने को तेरी वक्षस्थली आतुर हो; तो प्रताप का खड्ग इस अवसर का सहर्ष स्वागत करेगा। ___ मानसिंह-(क्रोधावेग में ) बस, चुप रहो, अधिक विष उगलना भोजन-गृह को ही रणभूमि बना देगा। विवाद करना वीर के लिये शोभास्पद नहीं। मैं इन सारे मिथ्यारोपों का उत्तर मांस की जिह्वा से नहीं, कृपाण की जिह्वा से दूंगा। रण-भू में हमारे सैनिकों द्वारा बन्दी होने पर तुम्हें मेरे ही चरणों पर गिरना पड़ेगा। तब ज्ञात होगा कि