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________________ [38] विशेषावश्यक भाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन ii. तिष्यगुप्त इन्होंने जीव प्रादेशिक मत का प्रचार किया। इस मत के अनुसार जीव का वह चरम प्रदेश जिसके बिना वह जीव नहीं कहलाता है और जिसके होने पर ही वह जीव कहलाता है। उस प्रदेश के अभाव में अन्य प्रदेश अजीव रूप हैं, क्योंकि उस प्रदेश से ही वे प्रदेश जीवत्व को प्राप्त करते हैं। इनका जन्म ऋषभपुर में हुआ था। तिष्यगुप्त भगवान् महावीर स्वामी को केवलज्ञान होने के 16 वर्ष बाद हुए। (गाथा 2333 से 2355 तक) iii. आषाढ़भूति - इन्होंने अव्यक्त मत का प्रचार किया। इस मत के अनुसार किसी की साधुता - असाधुता आदि का निश्चय नहीं हो सकता है। अतः किसी को वंदना - नमस्कार आदि नहीं करना चाहिए। यह भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के 214 वर्ष बाद हुए। इनका जन्म श्वेताम्बिका नगरी में हुआ था। (गाथा 2356 से 2388 तक) - जन्म iv. अश्वमित्र इन्होंने सामुच्छेदिक मत का प्रचार किया। समुच्छेद का अर्थ है होते ही सर्वथा नाश हो जाना। सामुच्छेदिक मत इसी सिद्धांत को मानता है। यह भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के 220 वर्ष बाद हुए। इनकी जन्मस्थली मिथिला नगरी थी। (गाथा 2379 से 2423 तक) v. गंग इन्होंने द्वैक्रियवाद का प्रचार किया। इस मत के अनुसार किसी एक समय में दो क्रियाओं के अनुभव की शक्यता का समर्थन करना द्वैक्रियवाद है। इनका जन्म उलूकातीर नगरी में हुआ था । यह भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के 228 वर्ष बाद हुए। ( गाथा 2424 से 2450 तक) vi. रोहगुप्त – इन्होंने त्रैराशिक मत का प्रचार किया । इस मत के अनुसार संसार में जीव, अजीव और नोजीव-अजीव इस तरह तीन प्रकार की राशियाँ होती हैं। यह भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के 544 वर्ष बाद हुए। इनकी जन्म स्थली अतरंजिका नगरी थी। - -- (गाथा 2451 से 2508 तक) vii. गोष्ठामाहिल - इन्होंने अबद्धिक मत का प्रचार किया। इस मत के अनुसार जीव और कर्म का बंध नहीं, अपितु स्पर्शमात्र होता है। इनका जन्म दशपुर में हुआ था। यह भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के 584 वर्ष बाद हुए। (गाथा 2509 से 2549 तक) viii शिवभूति इन्होंने दिगम्बर मत का प्रचार किया। इस मत के अनुसार वस्त्र कषाय का हेतु होने से परिग्रह रूप है । अतः वस्त्र त्याज्य है । यह भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के 609 वर्ष बाद हुए। इनकी जन्म स्थली रथवीरपुर थी । (गाथा 2550 से 2609 तक) निह्नव किस प्रकार हुए और पुन: गुरु / श्रावक / अन्य व्यक्तियों के द्वारा उदाहरण आदि से समझाने पर कुछ निह्नव ने तो प्रायश्चित्त आदि लेकर शुद्धि करली (लेकिन उस मत का प्रचलन जन सामान्य में हो गया) और कुछ अंतिम समय तक अपने अभिनिवेश से ग्रसित रहे इत्यादि वर्णन रोचक एवं जानकारी पूर्ण है ग्यारहवें द्वार समवतार की व्याख्या करते हुए गोष्ठामाहिल का प्रसंग आया और उसी प्रसंग से निह्नवाद की चर्चा प्रारंभ करते हुए, इस चर्चा की समाप्ति के साथ समवतार द्वार की व्याख्या भी समाप्त होती है । I १२. अनुमत व्यवहार, निश्चय नय से कौनसी सामायिक मोक्षमार्ग का कारण है, इसका विचार करना अनुमत कहलाता है । यहाँ अनुमत का वर्णन किया गया है। (गाथा 2621 से 2632 तक) - - -
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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