________________
प्रथम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति : एक परिचय [B] 15. सामायिक के बाधक कारण - कषाय आदि के उदय से सम्यक्त्व आदि सामायिक की प्राप्ति नहीं होती। यदि प्राप्त हो गई तो पुनः चली जाती है। कषाय के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा है कि जिसके कारण प्राणी परस्पर हिंसा करते हैं, उसे कषाय कहते हैं अथवा जिसके कारण प्राणी शारीरिक एवं मानसिक दुःखों से पीड़ित होते रहते हैं, उसे कषाय कहते हैं अथवा जिससे कष अर्थात् कर्म का आय अर्थात् लाभ होता है, उसे कषाय कहते हैं अथवा जिससे प्राणी कष अर्थात् कर्म को प्राप्त होते हैं, उसे कषाय कहते हैं अथवा जो कष का आय अर्थात् उपादान (हेतु) है वह कषाय है। कषाय की मंदता और उत्कृष्टता किस प्रकार चारित्र का घात करती है। इसका वर्णन भी यहाँ हुआ है।
(गाथा 1224 से 1256 तक) __ 16. चारित्र प्राप्ति - अनन्तानुबंधी आदि बारह कषाय के क्षय, क्षयोपशम आदि से चारित्र का लाभ होता है। चारित्र के पांच भेद - सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय तथा यथाख्यातचारित्र। इनका विस्तृत वर्णन करते हुए उपशम श्रेणी-क्षपक श्रेणी के स्वरूप का वर्णन किया गया है।
(गाथा 1254 से 1346 तक) 17. प्रवचन का सूत्र - केवलज्ञान की उत्पत्ति के प्रसंग को दृष्टि में रखते हुए जिन प्रवचन की उत्पत्ति, श्रुतधर्म आदि का वर्णन किया गया है।
(गाथा 1347 से 1384 तक) 18. अनुयोग - अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा, वार्तिक इन पांच एकार्थक शब्दों का स्वरूप कथन किया गया है। अनुयोग का सात प्रकार से निक्षेप होता है। अनुयोग के विपरीत अननुयोग का भी वर्णन किया गया है। व्याख्यान विधि की चर्चा करते हुए भाष्यकार ने विविध दृष्टांत देकर शिष्य-गुरु की योग्यता का मापदंड बताया है। अनेक प्रेरणास्पद दृष्टांत देकर गुरु-शिष्य के गुण-दोषों का सरस, सरल एवं सफल चित्रण किया गया है। (गाथा 1385 से 1482 तक)
19 सामायिक द्वार - उद्देश्य, निर्देश इत्यादि २६ द्वारों के माध्यम से सामायिक का वर्णन किया गया है।
(गाथा 1483 से 2787 तक) १. उद्देश्य - उद्देश्य का अर्थ सामान्य निर्देश अर्थात् सामायिक का सामान्य नाम क्या है? यह नाम, स्थापना आदि से आठ प्रकार का होता है। (गाथा 1483 से 1496 तक) २. निर्देश - वस्तु का विशेष उल्लेख निर्देश है अर्थात् सामायिक के भेदों का उल्लेख करना। इसमें भी नामादि आठ भेद हैं और नय दृष्टि से सामायिक की त्रिलिंगता का विस्तार से वर्णन किया है।
(गाथा 1497 से 1530 तक) ३. निर्गम - निर्गम का अर्थ प्रसूति (उत्पत्ति) है अर्थात् सामायिक की उत्पत्ति का मूलस्रोत क्या है? निर्गम, नाम आदि से यह छह प्रकार का होता है। इन छह भेदों का वर्णन करते हुए कहा है कि जिस द्रव्य सामायिक का निर्गम हुआ है वह द्रव्य यहाँ पर महावीर के रूप में है। क्षेत्र - महासेन वन है। काल - प्रथम पौरुषी प्रमाण और भाव - वक्ष्यमाण लक्षण पुरुष है। ये संक्षेप में सामायिक के निर्गमांग हैं। सामायिक के निर्गम के साथ स्वयं महावीर के निर्गम की चर्चा करते हुए जिनभद्रगणि ने बीच में ही गणधवाद का कथन किया है।
(गाथा 1531 से 1548 तक) गणधरवाद - इसमें इन्द्रभूति आदि ग्यारह ब्राह्मण पण्डितों और भगवान् महावीर स्वामी के बीच विभिन्न विषयों पर हुई दार्शनिक चर्चा का विस्तार से वर्णन किया गया है, इसे गणधरवाद कहते हैं। इस चर्चा में दार्शनिक जगत् के प्रायः समस्त विषयों का समावेश हो