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प्रथम अध्याय - विशेषावश्यक भाष्य एवं बृहद्वृत्ति : एक परिचय
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आवश्यक निर्युक्ति - दीपिका
माणिक्यशेखरसूरि द्वारा रचित दीपिका आवश्यकनिर्युक्ति का शब्दार्थ एवं भावार्थ समझने के लिए बहुत उपयोगी है। इसमें निर्युक्ति-गाथाओं का अति सरल एवं संक्षिप्त शब्दार्थ तथा भावार्थ दिया गया है। कथानकों का सार भी बहुत ही संक्षेप में समझा दिया गया है। प्रांरभ में दीपिकाकार ने वीर जिनेश्वर और अपने गुरु मेरुतुंगसूरि को नमस्कार किया है एवं आवश्यकनिर्युक्ति की दीपिका लिखने का संकल्प किया है। यह दीपिका दुर्गपदार्थ तक ही सीमित है, इसे दीपिकाकार ने प्रारंभ में ही स्वीकार किया है। मंगलाचरण के रूप में नंदीसूत्र की पचास गाथाएं हैं जो कि दीपिकाकार के कथनानुसार देवर्द्धिगणि द्वारा रचित हैं। दीपिका के अन्त में ग्रंथकार ने अपना परिचय देते हुए अपने को अंचलगच्छीय महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य मेरुतुंगसूरि का शिष्य बताया है। आप विक्रम की 15वीं शती में विद्यमान थे 14
अन्य अनेक विज्ञों ने भी आवश्यक सूत्र पर वृतियाँ लिखी हैं। संक्षेप में उनका विवरण इस प्रकार है जिनभट्ट, माणिक्यशेखर, कुलप्रभ, राजवल्लभ आदि ने आवश्यकसूत्र पर वृत्तियों का निर्माण किया है। इनके अतिरिक्त विक्रम संवत् 1122 में नमि साधु ने संवत् 1222 में श्री चन्द्रसूरि ने, संवत् 1440 में श्री ज्ञानसागर ने, संवत् 1500 में धीरसुन्दर ने, संवत् 1540 में शुभवर्द्धनगिरि ने, संवत् 1697 में हितरुचि ने तथा सन् 1958 में पूज्य श्री घासीलालजी महाराज ने भी आवश्यकसूत्र पर वृत्ति का निर्माण कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।
आवश्यकनिर्युक्ति-दीपिका का प्रकाशन ई. 1936-1941 में विजयदान सूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला सूरत द्वारा किया गया है।
5. टब्बे
टीका युग समाप्त होने के पश्चात् जनसाधारण के लिए आगमों के शब्दार्थ करने वाली संक्षिप्त व्याख्या बनाई गई, जो स्तबक या टब्बा के नाम से विश्रुत है और वे लोकभाषाओं में सरल और सुबोध शैली में लिखे गए। इन व्याख्याओं का प्रयोजन किसी विषय की गहनता में न उतर कर साधारण पाठकों को केवल मूल सूत्रों के अर्थ का बोध कराना था। इसके लिए आवश्यक था कि इस प्रकार की व्याख्याएं साहित्यिक भाषा अर्थात् संस्कृत में न लिखकर लोकभाषाओं में लिखी जाएं अतः तत्कालीन अपभ्रंश अर्थात् प्राचीन गुजराती भाषा में बालावबोधों की रचना हुई ।
धर्मसिंह मुनि ने 18वीं शताब्दी में भगवती, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति को छोड़ कर शेष 27 आगमों पर बालावबोध टब्बे लिखे थे। उनके टब्बे मूलस्पर्शी अर्थ को स्पष्ट करने वाले हैं। उन्होंने आवश्यक पर भी टब्बा लिखा था ।
6. अनुवाद युग
टब्बों के पश्चात् अनुवाद युग की शुरुआत हुई। मुख्य रूप से आगम- साहित्य का अनुवाद तीन भाषाओं में उपलब्ध है - अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी । आवश्यक सूत्र का अंग्रेजी में अनुवाद हो रहा है, गुजराती और हिन्दी में उपलब्ध हैं । शोध प्रधान युग में आवश्यक सूत्र पर पंडित सुखलालजी संघवी तथा उपाध्याय अमरमुनिजी आदि विद्वानों ने विषय का विश्लेषण करने के लिये हिन्दी में शोध निबन्ध भी प्रकाशित किये हैं। आवश्यकसूत्र पर उपाध्याय अमरमुनिकृत आवश्यक - विवेचन (श्रमणसूत्र) सन्मति ज्ञानपीठ, लोहामण्डी आगरा हिन्दी पाठकों के लिए विशेष उपयोगी है। 94. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 3, पृ. 422-424
95. आवश्यकसूत्र प्रस्तावना पृ० 63