________________ षष्ठ अध्याय विशेषावश्यकभाष्य में मन:पर्यवज्ञान न्यायदर्शन, वैशेषिकदर्शन, योगदर्शन, बौद्धदर्शन और जैन दर्शन में अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष का वर्णन प्राप्त होता है, किन्तु जैनागमों में जितना विस्तृत वर्णन अवधिज्ञान और मन:पर्यवज्ञान स्वरूप अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष का हुआ है उतना अन्य किसी भी दर्शन में प्राप्त नहीं होता है। गत अध्याय में अवधिज्ञान पर विचार करने के पश्चात् इस अध्याय में दूसरे अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष मन:पर्यवज्ञान का वर्णन किया जा रहा है। मन:पर्यवज्ञान में 'मन' शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ हुआ कि किसी न किसी रूप में मन इस ज्ञान में सहायक है। अतः इस ज्ञान के स्वरूप को समझने से पहले मन का स्वरूप समझना होगा। मन के स्वरूप का वर्णन 'ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय' में कर दिया गया है। मनःपर्यवज्ञान के वाचक शब्द ___भगवतीसूत्र', समवायांगसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र', आवश्यकनियुक्ति, षट्खण्डागम , विशेषावश्यकभाष्य' और नंदीसूत्र आदि में मन:पर्यव ज्ञान के लिए "मणपजव" शब्द का प्रयोग हुआ है। उत्तराध्यन सूत्र में "मणणाण" का प्रयोग हुआ है। उमास्वाति ने 'मन:पर्याय' शब्द का प्रयोग किया है। जबकि पूज्यपाद ने 'मनःपर्यय' शब्द का प्रयोग किया है। इस प्रकार मनःपर्यव, मन:पर्यय और मन:पर्याय इन तीन शब्दों का प्रयोग मन:पर्यवज्ञान के लिए होने लगा। बाद के समय में संस्कृत और प्राकृत साहित्य में इनके अलावा नये शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। पूज्यपाद के बाद के आचार्यों ने इन तीनों शब्दों का प्रयोग किया तो कुछ आचार्यों ने दो या एक शब्द का प्रयोग किया। जिनभद्र, जिनदासगणि और मलयगिरि ने तीनों शब्दों का प्रयोग किया है। हरिभद्र ने मन:पर्यव और मन:पर्याय इन दो शब्दों का और उपाध्याय यशोविजय ने मन:पर्याय और मन:पर्यव' शब्द का उपयोग किया है। अकलंक, विद्यानंद एवं धवलाटीकाकार वीरसेन ने पूज्यपाद का ही अनुसरण किया है। 1. द्वितीय अध्याय (ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय), पृ. 89-101 2. युवाचार्य मधुकरमुनि, भगवती सूत्र, शतक 8, उद्देशक 2, पृ. 251 3. युवाचार्य मधुकरमुनि, समवायांग सूत्र, समवाय 81, पृ. 140 4. युवाचार्य मधुकरमुनि, अनुयोगद्वारसूत्र, पृ. 3 5. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1, पृ. 12 6. मणपजवणाणावरणीयस्य कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ। -षटखण्डागम सूत्र 5.5.60 7. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 79 8. युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 24 9. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 28, गाथा 4 10. साहचर्यात्तस्य पर्ययणं परिगमनं मन:पर्ययः। - सर्वार्थसिद्धि, पृष्ठ नं. 67-68 11. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 83 पृ. 47, नंदीचूर्णि पृ. 20-21, मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 65-66 12. हरिभद्रीय, नंदीवृत्ति, पृ. 22 13. ज्ञानार्णव, पृ.18 14. जैनतर्कभाषा, पृ. 24 15. तत्त्वार्थराजवार्तिक, अध्ययन 1, सूत्र 9,23,25,28, धवलाटीका, भाग 13, पृ. 212, 328, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अध्ययन 1, सूत्र 9,23,25,28