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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
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दिगम्बर साहित्य में भी दृष्टिवाद के पांच भेद किये हैं - परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका। 1. परिकर्म
दृष्टिवाद के चार भेदों सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका के सूत्रार्थ को ग्रहण करने की योग्यता संपादन करने में कारणभूत भूमिका रूप शास्त्र को 'परिकर्म' कहते हैं अर्थात् पूर्वो का ज्ञान सीखने के लिए योग्यमति उत्पन्न करना। इससे बुद्धि विषय को ग्रहण कर सके ऐसा परिकर्मित किया जाता है। जैसे अंक, गिनती, पहाड़े, जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि सीखे बिना गणित शास्त्र सीखा नहीं जा सकता है, वैसे ही दृष्टिवाद में पहले परिकर्म शास्त्र को सीखे बिना दृष्टिवाद के शेष भेदों को नहीं सीखा जा सकता, परिकर्म शास्त्र सीखने पर ही आगे सीखा जा सकता है।
परिकर्म के मूल भेद सात हैं। वे इस प्रकार हैं - 1. सिद्ध-श्रेणिका परिकर्म 2. मनुष्य-श्रेणिका परिकर्म 3. पृष्ट-श्रेणिका परिकर्म 4. अवगाढ़-श्रेणिका परिकर्म 5. उपसंपादान-श्रेणिका परिकर्म 6. विप्रजहन-श्रेणिका परिकर्म 7. च्युत-अच्युत-श्रेणिका परिकर्म।
नंदीसूत्र में परिकर्म के इन मूल भेदों के भी उत्तरभेदों का कथन नमोल्लेख सहित किया गया है, यथा, सिद्धश्रेणिका परिकर्म के 14 भेद, मनुष्यश्रेणिका परिकर्म के 14 भेद, पृष्टश्रेणिका परिकर्म के 11 भेद, अवगाढ़श्रेणिका परिकर्म के 11 भेद, उपसंपादन-श्रेणिका परिकर्म के 11 भेद, विप्रजहनश्रेणिका परिकर्म के 11 भेद और च्युत-अच्युत-श्रेणिका परिकर्म के 11 भेद हैं, यों परिकर्म के सब उत्तरभेद 83 हुए 174
दिगम्बर साहित्य के अनुसार परिकर्म के पांच भेद हैं - 1. चन्द्रप्रज्ञप्ति 2. सूर्यप्रज्ञप्ति 3. जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति 4. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति। इनकी पद संख्या और विषय का वर्णन धवला375, गोम्मटसार आदि ग्रन्थों में किया गया है। इन पांचों के पदों को मिलाने पर कुल एक करोड़ इक्यासी लाख पांच हजार (18105000) पद हैं। 2. सूत्र
सभी द्रव्य, सभी पर्याय, सभी नय, सभी भंग विकल्पों को बताने का वर्णन सूत्रों में होता है। पूर्वो में रहे अर्थ को जो सूचित करे वह सूत्र, क्योंकि सूत्र संक्षेप में होता है, किन्तु अर्थ विशाल होता है। जैसेकि तत्त्वार्थ सूत्र अर्थ से बहुत विशाल है।
सूत्रों के बाईस भेद हैं। वे इस प्रकार हैं - 1. ऋजु सूत्र 2. परिणत 3. बहुभंगिक 4. विजय चरित 5. अनन्तर 6. परंपर 7. आसान 8. संयूथ 9. संभिन्न 10. यथावाद 11. स्वस्तिक आवर्त 12. नन्दावर्त 13 बहुल 14 पृष्ट-अपृष्ट 15. व्यावर्त 16. एवंभूत 17. द्विक आवर्त 18. वर्तमान पद 19. समभिरूढ़ 20. सर्वतोभद्र 21. प्रशिष्य 22. दुष्प्रतिग्रह।
दिगम्बर साहित्य में – 'सूत्रयति' अर्थात् जो मिथ्यादृष्टि दर्शनों को सूचित करता है, वह सूत्र है। जीव अबन्धक है, अकर्ता है, निर्गुण है, अभोक्ता है, स्वप्रकाशक नहीं है, परप्रकाशक है, जीव अस्ति ही है या नास्ति ही है, इत्यादि क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानी और वैनयिक मिथ्यादृष्टि के 363 मतों 372. सवार्थसिद्धि 1.20, राजवार्तिक 1.20.12, धवला पु. 1, सू. 1.1.2, पु. 109, धवला पु. 9, सू. 4.1.40, पु. 205,
गोम्मटसार जीवकांड गाथा 361-362 पृ. 600 373. पारसमुनि, नदीसूत्र, पृ. 259
374. नदीसूत्र, पृ. 192-196 375. धवला पु.1, सू. 1.1.2 पृ. 109-110, धवला पु. १, सू. 4.1.45 पृ. 206-207 376. गोम्मटसार जीवकांड गाथा 361-362 पृ. 601 377, गोम्मटसार जीवकांड गाथा 363-364 पृ. 604