________________
चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
[275]
कर्मों की स्थिति पकने पर उनका उदय में आया हुआ परिणाम (फल)। विपाकश्रुत में सुकृत और दुष्कृत कर्मों के फलस्वरूप होने वाला परिणाम कहा जाता है। इसके दो श्रुतस्कंध हैं, पहले श्रुतस्कन्ध का नाम दुःख विपाक है और दूसरे का नाम सुख विपाक है। दुःख का स्वरूप समझ लेने पर सुख का स्वरूप सरलता से समझ में आ सकता है। इसीलिये पहले दुःख विपाक का उल्लेख किया गया है। दुःख विपाक में हिंसादि दुष्कृत कर्मों के फलस्वरूप दुःख परिणाम पाने वाले दस जीवों के नगर, माता-पिता, नायक की इहलौकिक पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धि, नरकादि गति में गमन तथा से एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय के जो अनेक जन्म किये, करेंगे इत्यादि का विस्तार से वर्णन है।
सुख विपाक में धर्मदान आदि सुकृत कर्मों के फलस्वरूप सुखद परिणाम पाने वाले दस जीवों के नगर, माता पिता, भोगों का परित्याग, दीक्षा ग्रहण, तपाराधन, संलेखना, देवलोक प्राप्ति, पुन: बोधिलाभ और अंतक्रिया आदि का विस्तार से वर्णन है। सुख विपाक में वर्णित व्यक्तियों ने पूर्वभव में सुपात्र को दान दिया था। जिसके फल स्वरूप इस भव में उत्कृष्ट ऋद्धि की प्राप्ति हुई और संसार परित्त (हलका) किया। ऋद्धि का त्याग करके इन सभी ने संयम अङ्गीकार किया और देवलोक में गये। आगे मनुष्य और देवता के शुभ भव करते हुए महाविदेह क्षेत्र से मोक्ष प्राप्त करेंगे। सुपात्र दान का माहात्म्य इन कथाओं से भली प्रकार ज्ञात होता है। इसके दो श्रुतस्कंध हैं। बीस अध्ययन हैं। संख्येय सहस्र (अर्थात् 1 करोड़ 84 लाख 32 हजार) पद हैं। संख्येय अक्षर है तथा वर्तमान में 1250 श्लोक परिमाण हैं।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव के आश्रय से शुभ और अशुभ कर्मों के तीव्र-मन्द-मध्यम विकल्प शक्ति रूप अनुभाग (फलदान) के उदय को विपाक कहते हैं। उसका जिस सूत्र में वर्णन है, उसको विपाक सूत्र कहते हैं।
समीक्षा - विपाक सूत्र की विषय वस्तु का विस्तार से जितना वर्णन श्वेताम्बर साहित्य में उपलब्ध है। उतना दिगम्बर साहित्य में नहीं है। फिर भी यह निश्चित है कि दोनों परम्परा में वर्णित विपाक सूत्र की विषय वस्तु लगभग समान है।
ग्यारह अंगों के पदों का योग दुगुने-दुगुने की गिनती से 3 करोड़ 68 लाख 46 सहस्र है। वर्तमान में मात्र 35 सहस्र 6 सौ 26 श्लोक परिमाण अक्षर रहे हैं। 69 श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में मान्य पदों की संख्या का चार्ट
निम्न चार्ट में ग्यारह अंगों के पदों की संख्या श्वेताम्बर परम्परा के नंदीसूत्र एवं उसकी वृत्ति (कोष्ठक में) तथा समवायांग सूत्र और उसकी वृत्ति (कोष्ठक में) के आधार से एवं दिगम्बर परम्परा के कसायपाहुड के आधार से दी गई है। प्रवचनसारोद्धार में नंदीसूत्र की टीका के अनुसार ही ग्यारह अंगों के पदों की संख्या प्राप्त होती है। 70 अंगप्रविष्ट श्वे० परम्परा में पदों की संख्या दि० परम्परा में पदों की संख्या
नंदीसूत्र एवं वृत्ति समवायांगसूत्र एवं वृत्ति कषायपाहुड 1. आचारांग 18000 18000
18000 2. सूत्रकृतांग 36000 36000
36000 3. स्थानांग 72000 72000
42000 4. समवायांग 144000 144000
164000 369. पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 230
370. प्रवचनसारोद्धार भाग 1, पृ. 395