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________________ [184] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन धारणा की प्राचीनता प्राचीन आगमों में 'धितिमंता' (धृतिमान्)433 'धिई' (धृति)434 'सति' (सतिविप्पहूणा - स्मृति विहीन)435 'उवहारणयाए' (उपधारणता)436 भगवतीसूत्र में पांच व्यवहारों के उल्लेख में धारणा व्यवहार-37 तथा मतिज्ञान के अवग्रहादि चार भेदों में भी धारणा का उल्लेख है। धवलाटीकाकार वीरसेनाचार्य ने कोष्ठबुद्धि का सम्बन्ध धारणा के साथ जोडा है । 39 धारणा के प्रकार धारणा के तीन प्रकार होते हैं - 1. अविच्युति - जिनभद्रगणि के अनुसार अपाय द्वारा निर्णीत अर्थ में उपयोग की धारा का सातत्य रहता है, उससे निवृत्ति नहीं होना अविच्युति है अर्थात् उपयोग (ज्ञान की प्रवृत्ति) की धारा का अविच्छिन्न रहना अविच्युति है। इसका काल अन्तर्मुहूर्त का है।40 यशोविजय कहते हैं कि गृहीतग्राही होने पर भी यह प्रमाण रूप ही है, क्योंकि स्पष्टता, स्पष्टतम ऐसे भिन्न धर्म वाली वासना इससे उत्पन्न होती है, अतः यह अन्य-अन्य वस्तु की ग्राहकता है।141 2. वासना - जिनभद्रगणि के अनुसार अर्थोपयोग के आवारक कर्म के क्षयोपशम से जीव उस उपयोग से युक्त होता है। इससे कालान्तर में इन्दिय-प्रवृत्ति के अनुकूल सामग्री मिलने पर वह अर्थोपयोग पुनः स्मृति के रूप में व्यक्त होता है अर्थात् अविच्युति से आत्मा में ज्ञान के संस्कार संख्यात-असंख्यात काल तक बने रहना वासना है। वर्तमान में इसका उपयोग नहीं होने पर भी कालान्तर में पुनः स्मृति में यह संस्कार रूप वासना कारण बनती है।42 न्याय-वैशेषिक दार्शनिक संस्कार को ज्ञान से भिन्न मानते हैं। जबकि जैन दर्शन उसको ज्ञान रूप मानता हैं। इसमें भी दो मान्यताएं हैं - अकलंक और हेमचन्द्र वासना को ज्ञान रूप मानते हैं, जबकि यशोविजयजी इसको औपचारिक रूप से ज्ञान रूप मानते हैं। 44 3. स्मृति - जिनभद्रगणि के अनुसार कालान्तर में वासना के कारण इन्द्रियों के द्वारा उपलब्ध अनुपलब्ध उस अर्थ की मानस-पटल पर स्मृति उभरती है अर्थात् कालान्तर में कहीं पहले जैसा पदार्थ देखने से संस्कार जागृत होने पर 'इदं तदेव' (यह वही है) जिसे मैने पहले देखा था,' ऐसा ज्ञान स्मृति है। 45 मलयगिरि ने भी ऐसा ही उल्लेख किया है। अकलंक आदि तार्किक परम्परा के आचार्य 'इदं तदेव' इस ज्ञान को प्रत्यभिज्ञान कहते हैं, जिसका तत्त्व अंश स्मृति है।47 स्मृति के ही दो रूप होते हैं - 1. अविच्युति 2. वासना। स्मृति के द्वारा याद आयी हुई बात में जब तक उपयोग रहता है, तब तक अविच्युति और जब उपयोग चला जाता है, तब वासना। अविच्युति धारणा ही वासना को दृढ़ करती है, वासना जितनी दृढ़ होती है, निमित्त मिलने पर वह स्मृति को उबुद्ध करने में उतनी ही सबल कारण बनती है। 433. सूत्रकृतांग श्रु. 1. अ.9 गाथा 33 434. उत्तराध्ययन अ. 32 गाथा 3, सूत्रकृतांग 1.9.33 435. सूत्रकृतांगसूत्र, श्रु. 1 अ. 5 उ. 1 गाथा 9 436. सूत्रकंतागसूत्र श्रु. 2 अ.7 437. पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तं जहा - आगम-सुत-आणा-धारणा-जीए। भगवतीसूत्र श. 8 उ. 8 पृ. 337 438. भगवतीसूत्र श. 8 उ. 2 पृ. 152 439. षट्खण्डागम (धवला) पु. १ सू. 4.1.6 पृ. 53-54 440. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 290 441. जैनतर्कभाषा पृ. 19-20 442. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 291, मलयगिरि पृ. 168 443. प्रमाणमीमांसा, भाषा टिप्पण, पृ. 47 444. प्रमाणमीमांसा, भाषा टिप्पण, पृ. 48, जैनतर्कभाषा पृ. 20 445. मलधारी हेमचन्द्र वृत्ति गाथा 189 पृ. 95 446, मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ.168 447. लघीयत्रय 3.10-11, प्रमाणमीमांसा 1.2.2 से 4
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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