________________ [106] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन 5. अनिलावाचार - पढ़ाने वाले गुरु का नाम छिपाना नहीं 6. व्यंजनाचार - शास्त्र के स्वर, व्यंजन, गाथा, अक्षर, पद, अनुस्वार और व्याकरणादि का जानकार होना तथा विपरीत प्ररूपणा नहीं करना। 7. अर्थाचार - सूत्र का यथातथ्य अर्थ करना परन्तु काल्पनिक अर्थ नहीं करना। 8. तदुभयाचार-मूल पाठ और अर्थ शुद्ध को शुद्ध बोलना, पढ़ना एवं पढ़ाना। ज्ञान के चौदह अनाचार 1. वाइद्धं (व्याविद्ध)- सूत्र को तोड़ कर मणियों को बिखरने के समान सूत्र के अक्षर मात्रा, व्यञ्जन, अनुस्वार, पद, आलापक आदि को उलट-पुलट कर पढ़ना वाइद्धं अतिचार है। 2. वच्चामेलियं (व्यत्यानेडित) - सूत्रों में भिन्न-भिन्न स्थानों पर आये हुए समानार्थक पदों को एक साथ पढ़ना वच्चामेलियं अतिचार है। शास्त्र के भिन्न-भिन्न पदों को एक साथ पढ़ने से अर्थ बिगड़ जाता है / विराम आदि लिये बिना पढ़ना अथवा अपनी बुद्धि से सूत्र के समान सूत्र बनाकर आचारांग आदि सूत्रों में डाल कर पढ़ने से भी यह अतिचार लगता है। 3. हीणक्खरं (हीनाक्षर) - इस तरह से पढ़ना कि जिससे कोई अक्षर छूट जाय हीनाक्षर कहलाता है / जैसे 'नमो आयरियाणं' के स्थान पर 'य' अक्षर कम करके 'नमो आरियाणं' पढ़ना। 4. अच्चक्खरं (अधिकाक्षर)- अधिक अक्षर युक्त पढ़ना-पाठ के बीच में कोई अक्षर अपनी तरफ से मिला देना जैसे 'नमो उवज्झायाणं' में 'रि' अक्षर मिलाकर 'नमो उवज्झारियाणं' पढ़ना। 5. पयहीणं - किसी पद को छोड़कर पढ़ना पयहीणं अतिचार है। जैसे 'नमो लोएसव्वसाहूणं' में 'लोए' पद कम करके 'नमो सव्वसाहूणं' पढ़ना।। ___6. विणयहीणं (विनयहीन) - शास्त्र तथा पढ़ाने वाले का समुचित विनय न करना। ज्ञान और ज्ञान दाता के प्रति,ज्ञान लेते समय तथा ज्ञान लेने के बाद में विनय (वंदनादि) नहीं करके अथवा सम्यग् विनय नहीं करके पढ़ना विणयहीणं अतिचार है। 7. जोगहीणं (योगहीन) - सूत्र पढ़ते समय मन, वचन और काया को जिस प्रकार स्थिर रखना चाहिए, उस प्रकार नहीं रखना अथवा योग का अर्थ उपधान तप भी होता है। सूत्रों को पढ़ते हुए किया जाने वाला एक विशेष तप उपधान कहलाता है / उस उपधान (तप) का आचरण किये बिना सूत्र पढ़ना योगहीन दोष कहलाता है। 8. घोसहीणं (घोषहीन) - उदात्त, अनुदात्त, स्वरित, सानुनासिक, निरनुनासिक आदि घोषों से रहित पाठ करना / किसी भी स्वर या व्यंजन को घोष के अनुसार ठीक न पढ़ना, अथवा ज्ञान दाता जिस शब्द छन्द पद्धति से उच्चारण करावें, वैसा उच्चारण करके नहीं पढ़ना घोसहीणं दोष है। 9. सुटुदिण्णं - यहां "सुट्ठ" शब्द का अर्थ है - शक्ति या योग्यता से अधिक। शिष्य में शास्त्र ग्रहण करने की जितनी शक्ति है उससे अधिक पढ़ाना 'सुट्टदिण्णं' कहलाता है। ____ 10. दुट्ठपडिच्छियं - आगम को बुरे भाव से ग्रहण करना। 11. अकाले कओ सज्झाओ - जिस काल में (चार संध्याओं में) सूत्र स्वाध्याय नहीं करना चाहिये या जो कालिक सूत्रादि जिस काल (दिन रात्रि के दूसरे तीसरे प्रहर) में नहीं पढ़ना चाहिए, उस काल में स्वाध्याय करने को अकाल स्वाध्याय कहते हैं। 12. काले न कओ सज्झाओ - जिस सूत्र के लिए जो काल निश्चित किया गया है, उस समय स्वाध्याय न करना दोष है।