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ततो मूर्तिः पुनः श्रेष्ठा भाग्यानां तु समाश्रयः । भावानां परमो भावस्तनुर्द्वादशपोषकः ॥ १५९ ॥ तूर्ये सौम्याः शुभा एव मातृद्रव्यादिभोज्यदाः । राज्यप्रदाः शुभैः ष्टाः सर्वे सम्पत्तिदायकाः || १६०॥ ततस्तयं निधिः श्रेष्ठं राज्यभावसमन्वयम्' । ततः शुभं शुभे ष्टं लाभेन सहितं नभम् ॥ १६२॥ ततो धनं शुभाक्रान्तं जायास्थानं ततः शुभम् । शुभमप्यस्त केन्द्र त्वाच्छुभस्थानं बले गने ।।१६२ || उदयगते वृषराशौ भाग्यं पश्यति भाग्यवे । तत्कालं यः पुमान जातो यावज्जीवं समृद्धिमान् ॥ १६३॥ उदयतो वृषेशस्य स्वोच्चं तदैव गच्छतः ' । स्वयं पश्यति लग्नेशे जातविरं समृद्धिमान् ॥ १६४॥
भाग्यादिकों का आश्रय होने के कारण लग्न भी श्रेष्ठ माना गया है और सब भावों को पुष्ट करने वाला लग्न सब से श्रेष्ठ है ॥ १५६ ॥ चतुर्थ स्थान में शुभग्रह रहने से ही शुभ होता है और वे मातृधन-भोज्य आदि सुख को देने वाले होते हैं। यदि वे शुभग्रहों से देखे जायें तो राज्य वा सम्पत्ति देने वाले होते हैं ।। १६०||
उसके बाद राज्यस्थान को समन्वय करने वाला चतुर्थ स्थान श्रेष्ठ है। उसके बाद लाभस्थान से सम्बन्ध रखने वाला दशम भाव शुभ ग्रह से युक्त या देखा जाय तो शुभ फल देता है ।। १६१ ।।
शुभ ग्रह से सम्बन्ध रखने वाला धनस्थान और सप्तम स्थान हो तो शुभ होता है। सप्तम स्थान भी केन्द्र होने के कारण बलवान, शुभ ग्रह युक्त, दृष्ट होने से शुभ होता है ।। २६२ ।।
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'वृष लग्न हो और भाग्येश भाग्य स्थान को देखता हो उस समय में जो लड़का पैदा हो उसे आजीवन ऐश्वर्ययुक्त कहना चाहिये ।। १६३ ।। वृष लग्न हो और लग्नेश स्वोश्चाभिमुख अर्थात उच्च स्थान में जाता हो और लग्नेश लग्न को देखे तो बालक चिरकाल तक ऐश्वर्ययुक्त होगा ।। १६४ ॥
1. भावसमं द्वयम् for भावसमन्वयम् A. 2. सतं for शुभं A. 3. The reading मतम् ( A. Bh. ) for नमम् is correct. 4. गतम् for गते A. 5 भाग्यं पश्यति भाग्यपे । तत्कालं यः पुमान जातो यावज्जीवं for स्वोच्चं तदैव गच्छतः । स्वयं पश्यति लमेशे Bh.