________________
( ३० ) लग्नेशः कार्येशं विलोकते लग्नपं च कार्येशः । शीतगुष्टौ सत्यां परिपूर्णा 'कार्यनिष्पत्तिः ॥ १४१ ॥ कथयन्ति पादयोगं पश्यति सौम्येन लग्नपे लग्नम् । लग्नाधिपे च पश्यति शुभग्रहेनार्द्ध योगं च ॥ १४२ ॥ लग्नपतिदर्शने सति शुभग्रहौ द्वौ त्रयोऽथवा लग्नम् । पश्यन्ति यदि तदानीं प्राहुर्योगं तु भागोनम् ॥१४३॥ क्ररावेक्षणवर्जाश्चत्वारः सौम्यखेचरा लग्नम् । लग्नेशदर्शने सति पश्यन्तः पूर्णयोगकराः ॥ १४४ ॥ आद्य लग्नपतिः कार्ये लग्ने कार्याधिपो यदि । द्वितीयो लग्नपो लग्ने कार्ये कार्याधिपो भवेत् ॥ १४५ ॥ लग्नपः कार्यपचाप लग्ने यदि तृतीयकः ।
चतुर्थः कार्यगौ स्यातां यदि लग्नपकार्यपौ ॥ १४६ ॥
लग्नेशकार्येश को, कार्येश लग्नेश को देखें और चन्द्रमा की दृष्टि रहे तो कार्यसिद्धि अच्छी तरह होती है || १४१||
लग्न को कोई शुभ ग्रह देखता हो और लग्नेश लग्न को न देखे तो पादयोग होता है । यदि लग्नेश लग्न को देखें और शुभग्रह की दृष्टि नहीं हो तो अर्द्धयोग कहते हैं ।। १४२ ।।
लन को लग्नेश और दो वा तीन शुभग्रह भी देखे तो उस को कुछ अंश से न्यून योग कहना चाहिये || १४३ ||
लग्न को लग्नेश और चार शुभग्रह पापग्रहों की दृष्टि से रहित यदि देखें तो पूर्ण योग होता है || १४४ ||
लग्नेशकार्यक्षेत्र में और कार्येश लग्न में यदि हों तो एक प्रकार का योग होता है ।
लग्नेश लग्न में और कार्येश कार्य में हो तो दूसरा योग होता है ।। १४५ लग्नेश और कार्येश लभ में हो तो तीसरा योग होता है ॥ यदि लग्नेश और कार्येश दोनों कार्यक्षेत्र में हों तो चौथा योग होता है ।। १४६ ।।
1. काय for कार्य A. 2 A and At add इति दशा 3. त्रिभागोनम् for तु भागोनम् Bh. 4. क्रूरा विश्वक्षणा for क्रूरावेक्षया A, A' करावेक्षणवर्या Bh. 5. लग्नपो for लग्नपौ A.