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(२२) लगभूस्वअखकेन्द्रमायं तुर्यास्तकर्मजम् । केन्द्रात्परं पणफरं तस्मादापोक्लिमं परम् ॥१९॥ पणफरांझावि कार्य ज्ञेयमापोलिमाद्गतम् । केन्द्र सर्वे ग्रहाः पुष्टास्त्रैलोक्यैकफलप्रदाः ॥१०॥ घटमीनौ च चत्वारः सिंहाद्वाच्या दिनेश्वराः । मेषाद्या मृगचापौ च चत्वारश्च निशाह्वयाः ॥१०१॥ रव्यादय उचा अजवृषमृगकन्याकुलीरझपतौलौ । परमोचा दश१० त्रि३ मोह२८ तिथि१५ शर५ भ२७ नखैः२०॥ उच्चस्थानास्तगा नीचाः परमोच्चास्तदंशगाः । त्रिकोणोऽर्कादिसिंहोऽक्षोऽजस्त्रीचापतुला घटाः ॥१०३॥
भू लग्न की संज्ञा है । श्वभ्र, ख दशम स्थान की संज्ञा और लम, चतुर्थ, सप्तम, दशम केन्द्र कहलाते हैं और केन्द्र के बाद द्वितीय, पञ्चम, भष्टम, एकादश स्थान पणफर कहलाते हैं । उसके बाद नीसरा, छठा, नवम, बारहवाँ स्थान प्रापोक्लिम कहलाते हैं ।
परफण से भविष्य का और आपोलिम से भूतकार्य का ज्ञान होता है । केन्द्रस्थित यदि सभी ग्रह पुष्ट हों तो भूत, भविष्य और पतमान कालों के फल को बतलाते हैं ।।१०।।
सिंह से चार, तथा कुम्भ और मीन दिन में बली होते हैं । मेष आदि बार, मकर और धतु ये रात्री में बली होते हैं ॥१०१५॥
मेष, वृष, मकर, कन्या, कर्क, मीन, तुल राशियों में सूर्यादि ग्रहों के उन होते हैं। यही ग्रह १०३।२८।१५।५।२७।२० अंशों से परमोश होते हैं ॥१०॥
स्थान से सप्तम में ग्रह नीच होते हैं। परमोश के अंश ही नीच राशि में परम नीच कहलाते हैं । सूर्यादि सात ग्रहों के क्रम से सिंह, प, मेष, कन्या, तुल, धनु, कुम्भ ये मूल त्रिकोण कहलाते हैं ॥१०३।।
1. श्व for स्व A. 2 पणपरं for पणफरं Bh. 3 क्तिम for किम Bh. 4. फरपणा for पाफरा A. 5 कि for कि A. 6. ० कालिक० for. बैलोक्ये. A. 7. परमारा for परमोन्पा A.