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बुधः कापायिको जीवो मधुतिक्तौ तमाशनी ॥२३॥ जीवों गुरुबुधौ केतुनिराहुकुजेन्दवः । शुक्राौं मूलमाधिक्यं बलं यस्याधिकं तु तत् ॥२४॥ द्विपदी मार्गवगुरू भूपुत्राओं चतुष्पदौ । पक्षिणी बुधसौरी च चन्द्रराहू सरीसृपौ ॥२५॥ वित्रौ शुक्रगुरू क्षत्रं कुजाको शूद्र इन्दुजः । इन्दुवैश्यः स्मृतो म्लेच्छौ सैहिकेयशनिश्चरौ ॥२६॥ राजा मुनिः स्वर्णकारो द्विजो वणिग विशां पतिः । दासोऽन्त्यजः सूर्यमुख्याः क्रमादष्टौ ग्रहा अमी ॥२७॥
गुरु और बुध में गुरु का बल अधिक है। केतु, शनि, राहु, मंगल और चन्द्रमा से शुक्र और सूर्य का बल अधिक होता है ॥२४॥
शुक्र और गुरु दो चरण वाले ग्रह माने गये हैं। सूर्य और मंगल चतुष्पद अर्थात चार चरणों वाले ग्रह हैं । बुध और शनि पक्षिजातिक हा चन्द्रमा और राहु कीटजातिक हैं ॥२५॥
गुरु और शुक्र ब्राह्मण हैं। सूर्य और मंगल क्षत्रिय हैं । बुध शूद्र ' है । चन्द्रमा वैश्य है । शनि और राहु म्लेच्छ माने गये हैं ॥२६॥
सूर्य आदि पाठों ग्रह क्रम से राजा, मुनि, सुनार, ब्राह्मण, बनिया, वैश्य, दास और चाण्डाल कहे गये हैं ॥२७॥
1. B. adds,after thisv erse, the following: कटुकक्षारस्तितो मिश्री मधुराम्लकषायको । यद्वार्का धवलाधिक्ये रसाधिक्यस्य निर्णयः । 2. Bh. adds a verse here : कटुक्षारास्तिक्तमिश्रे मधुरान्तकायकाः । यद्वाी ह्यबलाधिक्ये रमाधिक्ये सनिर्णयः 3. The reading (A) for me is better, since the sun occurs in the third pada of this verse (शुक्राकौं )। 4 बने for बलं B., बाल Bh. h. भूमिजाकौं for भूपुत्राकौं A. 6. मौमा for कुमाौं A, A1. 7. For this verse B. and Bh. read :--ब्रामणो भृगुजीवो क्षत्रियौ रविमङ्गलो । वैश्यस्तु चन्द्रमाः शो बुधो म्लेच्छो तमाशनी। 8. If the reading of the text Cateyt: is adopted a syllable would run too short and the.metrical symmetry be ignored. The reading सूर्यमुख्या : as found in A, AS and B is there