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(५) मार्गकेन्द जलचरौ ज्ञजीची ग्रामचारिणौ ।' राहुक्षितिजमन्दार्कान् ब्रुवतेरण्यचारिणः ॥१९॥ प्रातःकाले जीवबुधौ मध्याह्ने कुजभास्करौ । अपराहे चन्द्रसितौ सन्ध्याकाले तमाशनी ॥२०॥ ऊर्द्धदृष्टी कुजादित्यावधोदृष्टी तमाशनी । तिर्यग्दृष्टी भृगुबुधौ चन्द्रजीवौ समेक्षणौ ॥२१॥ भौमाकौं पित्तमाख्यातौ श्लेष्मिको चन्द्रभार्गवौ । समधातू गुरुबुधौ ग्रहाः शेषास्तु वातिकाः ॥२२॥ कटुको कुजमार्तण्डौ क्षाराम्लौ चन्द्रभार्गवौ ।
शुक्र और चन्द्रमा जलचर हैं । बुध और वृहस्पति प्रामचारी हैं। राष्ट्र, मंगल, शनि और सूर्य बनचर कहे गये हैं ॥१६॥
बुध और बृहस्पति प्रातःकाल में, मंगल और सूर्य दोपहर में, चन्द्र और शुक्र अपरालकाल में, राहु और शनि संध्याकाल में बली होते हैं ।२०॥
मंगल और सूर्य की दृष्टि ऊपर की ओर होती है। राहु और शनि की दृष्टि नीचे की ओर होती है। शुक्र और बुध की दृष्टि तिरछी होती है। चन्द्र और गुरु की दृष्टि चारों ओर होती है ॥२१॥
सूर्य और मंगल की प्रकृति पित्तवाली होती है । चन्द्र और शुक्र कफप्रकृतिक हैं। गुरु और बुध कफ-पित्तप्रकृतिक होते हैं। और अन्य ग्रह वातप्रकृतिक होते हैं ॥२२॥
सूर्य और मंगल कडुवे रस वाले, चन्द्र और शुक्र क्षार तथा खट्टे रस वाले, बुध और बृहस्पति कषाय रस वाले, शनि और राहु मधुर और तिक्त रस वाले होते है ।।२३।।
1. B. and Bh. often differ from the Amb. text. For this line they read :-जीवबुधौ प्रामचरौ जलजी चन्द्रभार्गवो। It may be remarked here, that the readings of the ms B. have not been recorded in all places as the ms. is only a shorter recension of the present work. It has therefore been dismissed for the collation work except at places where the verses are tolerably in consonance with the text of adoption. 2. मितौ for सितो A. 3. A, B. The text is 307 which is obviously incorrect.