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( २१० ) मरण्यादिचतुष्कं च आर्द्रादिषु चतुष्टयम् । मेघाद्याः पञ्चधिष्ण्यास्तु स्वातित्रिकेन्द्रपञ्चकम् ॥११४१ ।। धनिष्ठाधं ततः पटकं चैवं भसप्तविंशतिः । पञ्चवेदेन भागोऽपि गृहयतेऽधमराशितः ॥ ११४२ ॥ यसत्रापि पुनर्लब्धं राशिस्तु शोध्यते ततः । त्रिषटकेन च गृह्णीत तिम्रः संख्यास्त्वधाधमे ॥ ११४३ ॥ गृहीत्वा तु पुनलब्धं राशावुपरि भे न्यसेत् । उदयास्तमने वक्र ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः ॥११४४ ॥ ग्रहयुद्ध राशिसंक्रान्तौ कणाघस्त्वेष जायते । आदित्येनात्र पूर्णाः स्वदेशे चैव लभ्यते ॥ ११४५ ॥ चन्द्रेण तु परे देशे शुक्रणापि स्वमण्डले । पूर्वेणास्तमितः शुक्रः पश्चिमस्यामुदेति चेत् ॥ ११४६ ॥
भरणी आदि के चार नक्षत्र, तथा श्राद्रा आदि के चार, मघा भादि के पांच नक्षत्र, स्वानी आदि के तीन, ज्येष्ठा आदि के पांच नक्षत्र ॥११४१॥
धनिष्ठा आदि के छः नक्षत्र इस प्रकार सत्ताईस नक्षत्र हुए, पांचवार का अधम राशि से भाग लेने पर जो वहां लब्ध हो उस राशि को घटा देते हैं, फिर तीन छः से भाग लेने पर तीन संख्या अधमाधम राशि में प्रहण करते हैं ॥११४२-११४३।।
उस लब्ध राशि को उपर के नक्षत्र में न्यास करें, ग्रहों के सदय अस्त, तथा वक्र में और चन्द्र सूर्य का प्रहण में ॥११४४॥ ___मह युद्ध से राशि संक्रान्ति में यह कणार्थ होता है. सूर्य से देश में ही पूर्णा लाभ होता है ।।१०४५॥
चन्द्रमा से अन्य देश में और शुक्र से भी अपने देश में, याद पूर्व में मस्त होकर पश्चिम में उदित हो तो ॥११४६।।
1. mafao for Euro Bh. 2. og for op Bh,