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( २०५ ) इति दिनमासवर्षाकाण्डे मण्डलपद्धतिः समाप्ता । करस्थं धारयेन्मूलं केतकीतालवृक्षयोः । मदोन्मत्तो गजस्तस्य द्वारेणैव हि गच्छति ।। १११० ॥ अमृतोष्णमरीचीनां दिव्याङ्गकोटिकारणम् । स्फुरद्भामण्डलव्याजाद्दर्शयन्तं तु केवलम् ॥ ११११ ॥ दहन्तं तु भयोद्यानं द्योतयन्तं जगत्त्रयम् । लक्ष्मीलक्षविधातारं नत्वा पार्श्व जिनेश्वरम् ।। १११२ ॥ श्रीमदवेन्द्र शिष्याणुः सर्वशस्त्राब्धिपारगः । श्रीमान हेमप्रभः सूरिकाण्डं स्मरत्यसौ ।। १११३ ॥ सेतिकामानपल्लीनां संख्यां विज्ञाय साम्प्रतम् । बहुप्यकाण्डेषु तथ्यशास्त्रं विरच्यते ॥ १११४ ॥ एकदिनार्धमध्ये तु घटिकार्घस्य कारणम् । क्रयं त्रिशतपष्टश्च मूल्यनिश्रयहतवे ।। १११५ ॥ चैत्र यश्व प्रधानोऽवः स पण्याघोऽत्र गृह्यते ।
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प्रत्यहं प्रमभं वापि प्रतिपण्यं च नूतनः ।। १११६ ।।
इति दिनमात्र काण्डे मण्डल पद्धतिः समाप्ता ।
जो केतकी, तथा ताल वृक्ष के मूल को हाथ में धारया करते हैं और जिनके द्वारा मदोन्मत्त हाथी चलता है, और जो चन्द्रमा, सूर्य के दिव्याङ्ग काकोटि कारणा तथा अपने देदीप्यमान तेजमण्डल को व्याज से दिखलाने वाले, जा भय रूपी उद्यान को दग्ध करते हैं. और तीनों संसार को प्रकाश करते है, तथा लाखों प्रकार से लक्ष्मी को देते हैं, ऐसे जिनेश्वर देव को नमस्कार करके श्रीमन देवेन्द्र के शिष्य सत्र शास्त्ररूपी समुद्र में पारंगत श्रीमान् हेमप्रभसूर अर्ध काण्ड को स्मरण करते हैं ।। १११०-१११३ ।। सेतिका तथा पल्लियों की मानसंख्या को सम्प्रति जानकर बहुत अर्ध काण्ड मथ्य शास्त्र को करते हैं, ।। ११९४ ।।
एक दिनार्थ के मध्य में होने पर भी घटिका का कारण होता है, तीन सौ साठ खरीदन योग्य वस्तु को मूल्य निश्चय करने के लिये चैत्र में जो प्रधान होता है, उस प्रतिपण्यार्ध को प्रतिदिन हठात ग्रहण करते है ।। ११५५-१११६ ॥
1. दूरेणेव for द्वारव A. 2. भो० for भयो० A. Al 3. सवि० for संतिo Bh. 1. नव्यं for तथ्य A. . प्रत्तमं चापि for प्रसभं वापि A.