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( २०३ ) आश्लेिषा शतभिषक पूर्वाषाढा च रेवती । मूलमुत्तरभद्रा च वारुणं शुभकारणम् ॥ १०९८॥ भग्णी कृत्तिका पुष्यो विशाखा पूर्वफाल्गुनी । पूर्वभद्रा मघा चेति चानेयमशुभप्रदम् ॥ १०९९ ॥ चित्रास्वातिमृगाश्विन्यः पुनर्वसुकरौ तथा । उत्तरा फाल्गुनी चैव वायव्यमशुभप्रदम् ॥११००॥ उल्कापातादयः सर्वेऽमीषु स्वसुफलप्रदाः । वर्षाकालं विना ज्ञेया वर्षाकाले च वृष्टिदाः । १००१॥ माहेन्द्रं सप्तरात्रेण सव्यो वारुणमण्डलम् । आग्नेयमर्द्धमासेन फले मासेन पावनम् ॥ ११०२ ॥ सुभिक्षं क्षेममारोग्यं राज्ञां सन्धिः परस्परम् । आद्यं मण्डलयो यं तद्विपरीतमन्त्ययोः ॥ ११०३॥
आर्द्रा, अश्लेषा, शतभिषा, पूर्वाषाढा, रेवती, मूल, उत्तराभाद्र, ये नक्षत्र वारुणा मण्डल कहलाते हैं, यह मण्डल शुभकारक होता है॥ १०६८।।
भरणी कृत्तिका, पुष्य, विशाखा, पूर्वफल्गुनी, पूर्वभाद्र, मघा, ये नक्षत्र आग्नेय मण्डल कहलाते हैं, यह मण्डल अशुभ कारक होता है ।। १०६४।।
चित्रा, स्वाती, मृगशिरा, अश्विनी, पुनर्वसु, हस्त, उत्तराफाल्गुनी ये वायव्य मण्डल कहलाते हैं. यह मण्डल अशुभ कारक होता है ॥ ११००।
"वषा काल को छोड़ कर और समय में यदि इन मण्डलों में उल्कापात इत्यादिक हो तो शुभ फल देते हैं, और वर्षा काल में हो तो वर्षा होती है ।। ११०१॥
____ माहेन्द्र मण्डल में सात दिन में वारुण मण्डल में सद्यः आग्नेय मण्डल में आधा मास में और वायु मण्डल में मास में फल होता है॥ ११०२॥
पहले दोनों ( माहेन्द्र, वारुगा, ) मंडल में सुभिक्ष, क्षेम. आरोग्य और राजाओं में परस्पर सन्धि होती है, और अन्त्य के दोनों (आग्नेय, वायव्य, ) मण्डल में उसका विपरीन फल होना है ।। ११८३ ।।
1, वर्षदाः for वृष्टिदा: A.