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भाद्रपदपौषमाधे सितपक्षे पति या तिथिस्तस्याः । द्विगुणदिन पमरणं यदि वा दुर्भिक्षमतिरौद्रम् ।।१०५८।। पूर्णिमास्याममावास्यां संलग्नस्तारकाक्षयः । महषं तत्र पूर्वार्धान्मासमध्येऽपि जायते ॥१०५९।। मासमध्ये यदा द्वौ तु योगी च त्रुटथतः क्रमात् । महर्षे घृततेले द्व योगे वृद्धी समघके ॥१०६०॥ वर्षाकाले त्रिमासेषु नक्षत्रं वद्धते स्फुटम् । तिथिस्त्र्युटयति संलग्ना शुभः कालस्तदा बहु ॥१०६१॥ वर्षाकाले त्रिमासेषु नक्षत्रं त्रुटति स्फुटम् । तिथिश्च वधते तत्र ध्रुवं लोको विनश्यति ॥१०६२।। अधिकोना समा वा स्यान्नक्षत्रात् पूर्णिमा यदा । महषं च समघ च तुल्याघमशनं क्रमात् ।।१०६३।।
भाद्र, पोप, माघ, इन मासों के शुक्ल पक्ष में जिस तिथि का क्षय हो तो उस से उस तिथि के द्विगुण दिन में कर राजा का मरण होता है वा दुर्भिक्ष और अत्यन्त रोद्र समय होता हे ||१०५८।।
यदि पूर्णिमा, अमावास्या, दोनों में लगातार तारा का क्षय हो तो वहां मास के मध्य में भी पूर्वाप से महर्घ होता है ।।१०५६।।
एक मास के मध्य में यदि दो योगों का क्षय हो सो क्रम से घृत तैल दोनों महर्घ होता है, और योग की वृद्धि हो तो समर्ष होता है ।।१०६०॥
वर्षा काल में तीनों मास में लगातार नक्षत्र की वृद्धि, तथा तिथि का क्षय हो तो बहुत शुभ काल होता है ॥१८६१।। ।
यदि वर्षा काल मे तीनों मास में नक्षत्र का क्षय हो और तिथि की वृद्धि हो तो अवश्य लोगों का नाश होता है ।।१०६२।।
__यदि पूर्णिमा मे उस मास के नाम नक्षत्र से अधिक या, ऊन, या, सम नक्षत्र हो तो क्रम सं महर्ष, समर्थ, तुल्यार्घ, होता है ।।१०६३।।
1.ध्रुवमfor स्फुट A.