________________
( १९४ ) आषाढ्यां पूर्विकाषाढा वर्ष यावत् शुभंकराः । आवर्ष मध्यमं धान्यं देशे सर्वत्र कथ्यते ॥१०४७॥ अभ्रं विना यदा रम्यौ वातौ पूर्वोत्तरौ यदि । यत्र याम्यार्द्ध के तत्र मासे वृष्टिहठाद्भवेत् ॥१०४८॥ आषाढीयोगाः। मासाभिधाननक्षत्रं सकायां क्षीयते यद।। महषं च तदावश्यं वृद्धौ ज्ञेया समर्घता ॥१०४९॥ मातनामकनक्षत्रं राकायां न भवेद्यदा। महर्घ च तदावश्यं तन्नियोगे विशेषतः ॥१०५०॥ धिष्ण्यवृद्धिर्दिने चन्द्रः करैयदि न दृश्यते । समय जायते पुष्टं करदृष्ट महघता ॥१०५१॥
आपाढ़ी पूर्णिमा मे यदि पूर्वाषाढा नक्षत्र हो तो वर्ष पर्यन्त शुभ होता है, और सम्पूर्ण वर्ष धान्य की निष्पत्ति तथा प्रजा का सौख्य इत्यादिक सब देशों में होता है ॥ १०४७ ।।
आपढ़ी पूर्णिमा में जिस यामाई में मेघ को छोड़कर सुन्दर पूर्वी सषा उत्तरी वायु वहे तो उस मास में हठात वर्षा होती है ॥१०४८॥
इति आषाढीयोगाः। मासों का नाम नक्षत्र पूर्णिमा में यदि क्षय हो जाय तो महर्घ होता और यदि उस नक्षत्र की वृद्धि हो तो समर्घ होता है ।।१०४६॥ ___ मासों का नाम नक्षत्र यदि पूर्णिमा में नहीं हो तो अवश्य महर्ष होता है उसके नियोग में विशेष रूप से कहते हैं ॥१०५०।।
जिस दिन नक्षत्र की वृद्धि हो और चन्द्रमा पापग्रहों से नहीं देखे जाते हों तो समर्घ होता है, और उस पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो महर्ष होता है ॥१०५१।। ___ 1. For this line A reads, आवर्ष धान्यनिष्पत्तिः प्रजासौख्यमविप्रहात । 2. यामार्टिके for याम्याड़िके A. 3. क्षीयते यदि for न भवेद्यदा Bh. 4. तिथि for तन्नि Bh. तत्र A.