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( १७८) उदग्वीथीं चरन् जीवः सुभिक्षक्षेमकारकः । मध्यमे मध्यमं चार्वमेवमन्येऽपि खेचराः ॥९५७ ॥
इति गुरुवारः । उत्तरेण ग्रहाणां तु चन्द्रवारी भवेद् यदि । सुभिक्षं विग्रहाभावो जायते तत्र वत्सरे ॥ ९५८ ॥ पञ्च ताग ग्रहा यत्र सोमं कुर्वन्ति दक्षिणे । भौमे च राजमारी च जनमारी च भार्गवे ।। ९५९ ।। बुधे रसक्षयं कुर्याद् गुरौ कुर्यान्निरोदकम् । शनावर्थक्षयं कुर्यान्मासे मासे निरीक्षयेत् ॥ ९६० ।। चित्रानुराधा ज्येष्ठा च कृत्तिका रोहिणी तथा । मघा मृगशिग मूलं तथाषाढाविशाखयोः ॥ ९६१ ।। एतेषामुत्तरे मार्गे यदा चरति चन्द्रमाः क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं मुवृष्टिर्जायते तदा ॥ ९६२ ।।
यदि गुरु उत्तर वीथी से मंचार करें तो सुभिक्ष और क्षेम कारक होते हैं. और मध्य वीथी से मध्यम अघे करते हैं इस तरह और ग्रह का मी विचार करें ।।६५७||
इति गुरुवारः । जब चन्द्रमा प्रहों के उत्तर मार्ग से जाते हैं तो, सुभिक्ष, विग्रह का प्रभाव उस वर्ष में होता है ॥१५॥
पञ्चतारा ग्रह जहां पर चन्द्रमा को दक्षिण करते हैं, वहां यदि मंगल करे तो राजमारी अर्थात कोई ऐसा उपद्रव जिससे राजा के तरफ से लोग मारे जाय और शुक्र करे तो बहुत लोग मरें, ॥१५६।।
___ बुध करे तो रसों का तय, बृहस्पति करें तो पानी नहीं मिले, और शनि को तो धन का क्षय होता है, इस प्रकार मास मास का फल विचार करें ॥१६॥
चित्रा, अनुराधा, ज्येष्ठा, कृत्तिका रोहिणी, मघा, मृगशिरा, मूल. पूर्वाषाढ, उत्तराषाढ, इन नक्षत्रों के उत्तर मार्ग से यदि चन्द्रमा संचरण करे तो कल्याण मुभिक्ष आरोग्य. सुदृष्टि होते हैं ।।६६१-६६२।।
1. चार्थ० for चा Bh.