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________________ ( १७७ ) चाय पूर्वधिष्ण्ये प्रहग्यमुगते जायते दिव्यकालम् ९५३ भौमत्येनाथे कुशलकुतिरवेः संक्रमे वृद्धि के स्यात् आषाढ्यां सौम्यपूर्वे प्रसरति पवने दुर्दिने सर्वयामान् । रात्रावार्द्राप्रवेशे वृषभतनुगते सौम्ययुक्ते च सर्वे चिरेतैः कालो जगति शुभकरो वर्षणे कृत्तिकायाम् ||९५४ || रात्रौ संक्रान्ति यामप्यगस्त्योदयो भवेत् । 3 तदा वर्षे सुभिक्षं स्याद् विपरीते विपर्ययः ।। ९५५ ॥ सौम्याद पञ्च स्यात्सुरगुरुरुदितो दुःखदौर्गत्यकर्ता पित्र्यादौ वा चतुष्के भवति समुदितः सौख्यनद्भिक्षदाता | चित्राद्यैर्वाष्टधिण्यैः तृणसिहिभयं संततं संविधत्तं कर्णादौ धिष्ण्यपंक्ती जगति वितनुते सौस्थ्यसम्पत्तिसौख्यम् वर्गों में हो वा मंगल वक्री हो, और आषाढी पूर्णिमा में पूर्वाषाढ़ नक्षत्र हो और आठों प्रहर सुन्दर काल हो ।। ६५३ ।। राजा, मन्त्री, तथा अन्नाधिप ये रवि के संक्रान्ति काल में वृश्चिक में हो, आपाड़ी पूर्णिमा में उत्तरा, पूर्वा वायु चले और सत्र प्रहरों मेंदुर्दिन हो, और रात्रि में आर्द्रा का प्रवेश हो, सूर्य शुभ ग्रह से युक्त हो कर वृष लग्न में हो और कृत्तिका मे वर्षा हो तो इन चिन्हों से संसार में शुभ कर समय होता है ।। ६५४ ॥ रात्रि में नक्षत्र में सूर्य की संक्रान्ति हो और अगस्त्य का उदय भी हो तो उस वर्ष में सुभिक्ष समय होता है और विपरीत होने पर विपरीत ही फल कहें ।। ६५५ ।। मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, इन नक्षत्रों में बृहस्पति उदित हो तो दुख और दुर्गति करता है, और मघा, पूर्व फल्गुनी, उत्तर फल्गुनी, हस्त, इन नक्षत्रों में उदिन हो तो सौख्य और सुभित होता है । चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा ज्येष्ठा, मूल. पूर्वापाढ़, उत्तराबाढ़, इन नक्षत्रों में गुरु उदित हो तो तृगा. शीतादि का भय सतत होता श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र, ग्वमी, इन नक्षत्रों में उदित हो तो स्वस्थता सौख्य, और सम्पत्ति का विस्तार करता है । ६५६ 1. काल: for कालम Bh. 2. भूपे for भौमे Bh. 3. ध्येयकामहि for oष्यैः तृगामिद्दि Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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