SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४२ ) किंवा नवसु यामेषु विद्युद्वाताभ्रदर्शनम् । यस्यां दिशि च सम्पूर्णं तद्दिने तत्र वर्षति ॥ ७६३ ।। चैत्रमासे मेष संक्रान्तिदिने यामविद्भिरपि कालनिष्पत्तिज्ञानम् । आषाढीतः कालनिष्पत्तज्ञानं कथ्यते ॥ आषाढ्या घटिकापष्ट्या मासद्वादश निर्णयः || द्वादश पञ्च का षष्टिरित्येवं क्रममादिशेत् ॥ ७६४ ॥ 2 पञ्चनाडी भवेन्मासे मासि मासि फलं पृथक | यत्र नाड्यां शुभ बातो विद्युदआणि गर्जनम् || ७६५ ।। तत्र मासे भवेद्दृष्टिरिद कालनिरीक्षणम् ॥ पूर्णमास्यां विनष्टायां विनष्टं वर्षमादिशेत् ।। ७६६ ।। अथवा मेष संक्राति काल से नौ प्रहरों में जिस दिशा में विद्यत्, वायु, बादल, सम्पूर्ण दिखाई दें तो उस दिशा में उस दिन वर्षा होती है ।। ७६३ ।। ऐसा चैत्र मास मे मेत्र संकांति दिन बाम को भी जानने वाले काल निष्पत्ति का ज्ञान करें । अब आषाढ़ी पूर्णिमा पर से कालनिष्पत्ति ज्ञान को कहते हैं। ! आषाढ़ पूर्णिमा के साठ घटी से द्वादश मासों का निर्णय करें । अब साठ घटी को द्वादश भाग करने पर पांच पांच घटी का एक भाग हुआ इसी के क्रम से फल का आदेश करें । ७६४ ॥ पांच, पांच, नाड़ी का एक एक मास हुआ इस से मास मास का फल पृथक होता है, जिस मास की नाड़ी में सुन्दर वायु, विद्युत्, बादल, तथा उसका गर्जन हो । ७६५ ।। उस मास में वर्ण होगी यही काल का निरीक्षणा हैं । पूर्णिमा यदि नष्ट हो जाय अर्थात पूर्णिमा में बादल वायु इत्यादिक नहीं हो तो उस वर्ष को नष्ट ही समझना चाहिये || ७६६ ॥ 1. वाताभ्रादि शुभं बहु for विद्यद्वाताभ्रदर्शनम् A. 2. भवेन्मासो for भवेन्मासे A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy