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तुंगस्थो मूर्तिगः खेटः शेषैराद्यत्रिकोणगैः । आकस्मिका पदावाप्तिरेवं स्तोका स्वगेहगैः ॥ ७११ ॥ प्रभुमेनं करोमीति प्रश्ने क्रूर ग्रहो यदि ।
छिद्रे घने धने च स्याद्विनाशो वाञ्छितः प्रभो ॥ ७१२ ॥ वर्गोत्तमैः शुभैर्युक्त शीर्षोदयस्वभाव के । उच्चांशे स्वगृहांशे वा पदप्राप्तिर्न दुर्लभा ।। ७१३ ।। अन्योन्यधामगोलोको लग्नाधिपपदेश्वरौ । खे च चन्द्रनभोनाथे मूर्तीशाः स्युः पदार्थकाः ।। ७१४ ॥ पदेश त्पदं पश्येत् पदं तदा स्थिरात्मकम् । मध्यपेशशुभं राज्यं पदभ्रंशी हि पापगे ।। ७१५ ॥ मुथसिले नभोनाथे तत्र च सूर्यमिश्रिते ।
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मकचूले महायोगे राज्यं भवति तत्क्षणात् ।। ७१६ ॥
लग्न स्थित ग्रह उच्च का हो और शेष ग्रह पचम में हो तो आकस्मिक पद की प्राप्ति होती है, यदि वे ग्रह अपने घर के हों तो छोटे पद की प्राप्ति होती है ।। ७११ ॥
इसको मालिक बनायेंगे ऐसा प्रश्न करने पर यदि पाप मह, अष्टम, सप्तम, द्वितीय, में हों तो उसकी इच्छा सिद्धि नहीं होती ।।७१२ ।। शुभग्रह अपने वर्गोत्तम मे हों, शीर्षोदय राशि लग्न हो और वे मह उपांश मे या स्वगृही के अंश में हों तो पद की प्राप्ति दुर्लभ नहीं हे ।। ७१३ ।।
लग्नेश पद स्थान में ही पदेश लग्न मे हो और चन्द्रमा, दशमेश लमेश ये दशम भाव में हों तो पद को देने वाले होते हैं ।। ७१४ ।।
पदेश यदि पद स्थान को देखे तो स्थिर पद कहना चाहिये । पदेश यदि शुभयुक्त हो तो राज्य होता है, पाप राशी में हो तो पद अंश होता है ।। ७५५ ।।
"यदि दशमेश मुथशिल करता हो उस में सूर्य भी हो इस प्रकार मकबूल महायोग मे उसी क्षण राज्य होता है ।। ७१६ ।।
1. यहौ for ग्रहो A. 2. पदे for पदं ms. मध्यपेश Bh. 4. भ्रंशः समापगै: for अंशी 6. भूभुजाम् for यत्क्षणात A.
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३ मध्यमांश for हि पापगे Bh.