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( ११४ ) दक्षिणाङ्गगताः कराः सौम्या वामाङ्गमाश्रिताः । शिरश्छेदे समुत्पन्ने रुण्डं धावति सम्मुखम् ॥६१॥ यस्य वामाङ्गगाः क्रगः सौम्या यस्य च दक्षिणे । भङ्गस्तस्य रणे सम्यग यदि शूरो महाभटः ॥६१२॥ घातपरिहानाय नरचक्रम् । इति सप्तमे युद्धप्रकरणं पञ्चमं सम्पूर्णम् ॥
. युद्धानन्तरं सन्धिविग्रहप्रकरणमारभ्यते । लग्नेशसुहृदः केन्द्रे सन्धिं कुर्वन्ति शोमनाः । शत्रवो विग्रहं क्रग धनेशसुहृदो यदि ॥६१३॥ शुभवर्गगताः सन्धिं सौम्ययोगेक्षितास्तथा । मूर्तिसप्तेश्वरारित्वे षष्ठारित्वे च विग्रहः ॥६१४॥ आपोक्लिमे (?) नृलग्नस्थः प्रीत्येव लग्नगः" शुभः । द्विदेहस्थैर्ग्रहः सौम्यैः सन्धिः पापैस्तु विग्रहः ॥६१५।।
यदि दक्षिण अंग में पाप ग्रह हो और शुभ ग्रह वाम अंग में हो तो उसका शिर कट जाने पर भी रुएड श्रागे को दौड़ता है ॥६११।।
जिस के वाम अंग में पाप ग्रह हो, और दक्षिण अङ्ग में शुभ ग्रह हो तो महा बलवान योद्धा होने पर भी युद्ध में उसका भंग होता है॥६१२॥
घातपरिज्ञानाय नरचक्रम् । इति सप्तमे युद्धप्रकरण पंचम सम्पूर्णम् ॥ अथ युद्धानन्तरं सन्धिविग्रहप्रकरणं प्रारभ्यते ।
लमेश यदि केन्द्र में हो और शुभ ग्रहों के साथ मित्रता हो तो शत्रु सन्धि करे यदि सप्तमेश केन्द्र में हो और उमकी पापग्रहों के साथ मैत्री हो तो शत्रु विग्रह करता है ॥६१३॥
. अदि लग्नेश, सप्तमेश दोनों शुभ ग्रह के वर्ग में हों और शुभप्रह से युक्त हों या देखे जाते हों तो दोनों में सन्धि होती है और लग्नेश, मसमेश को आपस में शत्रुता या षष्ठेश के साथ शत्रुता हो तो विग्रह होता है॥६१५||
आपोलिम में नर राशि हो, और शमाह लग्न में हो तो प्रीति होती है, शुभग्रह यदि द्विःस्वभाव राशि में हो तो सन्धि होती है और पापमह यदि द्विः स्वभाव राशि में हो तो विग्रह होता है ॥११॥
1. संस्थिताः for oमाश्रिताः A.2. दक्षिणा for दक्षिणे A. 3. महामदः for महाभट: A. 4. लगेशः for लग्नेश ms. 5. सद्धि for सान्धms. 6 शोऽमुहदो for शाहदो ms. 7. यथा for यदि A. 8. भापोत्क्ले म Bh. 9. लग्नटः for लग्नगः A.