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शुभकरसमायोगे शुभाधिक्ये फलं वदेत् ।
विचार्य जयसंसिद्ध निश्चयः क्रियते स्फुटम् ||५८९ ॥ इति धनुश्चक्रम् ।
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कुन्ताकारं लिखेचक्रं तीक्ष्णदण्डं सनाविकम् ' | युधि विष्ण्यादिमालोक्य क्रमान्नत्र नव त्रिधा ॥ ५९० ॥ नव यत्र राजर्क्ष वच्मि तत्र शुभाशुभम् । मृत्युस्तीक्ष्णे जयं दण्डे नाविके च समं रणम् ||५९१॥ इति कुन्तचक्रम् |
अथ भूवलानि युद्धे कथ्यन्ते । चक्रे भास्करपत्राख्ये मेषाद्याः सव्यमार्गगाः * । वर्त्तमानोदयस्थानाद् भुक्तिः सार्द्धघटीद्वयम् ॥ ५९२ ॥ पृष्ठदक्षिणसंस्थेयं जयदा कथिता बुधैः । महामारीति विख्याता कथिता भटसागरे || ५९३ ॥
जहाँ पर शुभग्रह अशुभपह दोनों का योग हो उसमें शुभाधिक्य हो तो जयसिद्धि होती है ऐसे फल का विश्वार करें ||५८६|| इति धनुश्चक्रम्
कुन्ताकार नाविक से युक्त तीक्ष्ण दण्ड चक्र लिखें उसमें युद्ध काल में जो नक्षत्र हो उस नक्षत्र से नौ नौ नक्षत्र तीन जगह लिखें उस में राजा का नक्षत्र जहां पर हो उस पर से शुभाशुभ का ज्ञान करें । यदि तीक्षा में राजा का नक्षत्र हो तो मृत्यु और दण्ड में हो तो जय और नाविक में हो तो युद्ध में समान होता है ||५६०||५६१ ॥
इति कुन्तचक्रम्
अथ भूबलानि युद्धे कथ्यन्ते ।
द्वादश पत्रों के चक्र में मेषादि सव्य क्रम से वर्त्तमान उदय स्थान से अढ़ाई अढ़ाई घटी की भुक्ति होती है ||५६२||
इसमें पृष्ठ और दक्षिण की संस्था जय देने वाली होती है इसको भट सागर में महामारी कहते हैं || ५६३||
1. सनायकम् for सनाविकम् Bh. 2 This line is missing in the ms. 3. सवमागता for सव्यमार्गगा: ms.