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________________ क्सुवाणरसा वेदाः सप्त चन्द्राग्निपक्षकाः । एवमङ्का नगैर्भक्ताः शेषमात्राधिको जयः ॥ ५६६ ॥ गजाश्वीयस्य संवृद्धौ पार्थिवः स्यादलोत्कटः । अतो गजाश्वशस्त्राणां बलं वक्ष्यामि शास्त्रतः ।। ५६७ ॥ गजाकारं लिखेच्चक्रं शुण्डाधवयवान्वितम् । अष्टाविंशतिभान्यत्र दातव्यानि च सृष्टितः ।। ५६८ ॥ मुखे शुण्डाग्रनेत्रे च श्रवः शीर्षांघिपुच्छके । द्वयं द्वयं क्रमाद्धयं पृष्ठोदरे चतुश्चतुः ॥ ५६९ ॥ मातङ्गनामधिष्ण्यादि गण्यते वदनाद् बुधैः । यत्र धिष्ण्ये स्थितः सौरिर्वाच्यं तत्र शुभाशुभम् ।। ५७० ॥ वक्ते शुण्डाग्रनेत्रं च सौरिभं यस्य मस्तके । युद्ध काले गजो यत्र जयस्तत्र न संशयः ॥ ५७१ ॥ आठ, पांच, छ', चार, सात, एक, तीन, दो इन अंकों में से प्रश्नकर्ता जिसका उच्चारण करे वहाँ तक अङ्क को संकलित करके सात का माग दें शेष यदि उच्चारित अंक से ज्यादा हों तो जय होता है ।।५६६॥ हाथी, घोड़ा, इत्यादि की वृद्धि से राजा को बहुत बल होता है, इसलिये हाथी, घोड़ा, शस्त्र, इत्यादि का बल शास्त्र से कहता हूँ॥५६७॥ हाथी के आकार शुएडादि अवयवों के साथ एक चक्र लिखें उसमें अट्ठाईस नक्षत्रों को अश्विन्यादि के क्रम से स्थापित करें ॥५६८।। उसका मुख, शुएड के अप्रभाग, और दो आंख, दो कान, मस्तक, दोनों चरण, पुच्छ, इन दस अंगों में दो दो नक्षत्र स्थापित करें, पृष्ठ और पेट इन दोनों स्थानों में चार चार नक्षत्र स्थापित करें इस प्रकार अाईस नक्षत्रों को स्थापित करके फल कहें ॥५६॥ माता के नाम नक्षत्र से उसके मुख आदि क्रम से पंडित गणना करें जिस नक्षत्र में उस समय शनि हो उस पर से शुभाशुभ फल कहें॥५७०।। जिस राजा को युद्ध काल में शनि का नक्षत्र गज चक्र में मुख शुण्डाप, दोनों नेत्र और मस्तक, इन पांच स्थानों में हो तो उस युद्ध में उनकी जहां पर हाथी हो वहां अवश्य ही विजय होती है ॥५७१॥ 1.के for को A. 2 भावान्य for भान्य ms. B.०० for ऐ० Bh. 4. धाम for नाम Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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