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ये जानन्ति ग्रहान् सर्वान् होरामन्त्रबलानि च । तेषां जयो महायुद्धे वक्तव्यः पण्डितैः स्फुटम् ।। ५६१ ॥ द्वितीया दशमी षष्ठी द्वादशी च कुला भृणु' । अकुला विषमाः प्रोक्ताः शेषाश्च तिथयः कुलाः || ५६२ ॥ सूर्यचन्द्रो गुरुः सौरिश्वत्वारस्त्वकुला ग्रहाः । भौमशुक्र कुलो लोके बुधवारः कुलाकुलः ।। ५६३ ।। वारुणार्द्राभिजिन्मूलं कुलाकुलमुदाहृतम् । कुलानि मासनामानि शेषाण्यकुलभानि तु ।। ५६४ ॥ अकुले धिष्ण्यवारे च तिथौ च यायिनो जयः । कुलाख्ये स्थायिनो वाच्याः सन्धिरेव कुलाकुले || '५६५ ॥
जो सब ग्रहों को जानते हैं, और होरा तथा मन्त्र - बल को भी सम्यक् प्रकार से जानते हैं उन्हीं का महायुद्ध में जय होता है, ऐसे पण्डितों को स्पष्ट कहना चाहिये || ५६१||
द्वितीया, दशमी, षष्ठी, द्वादशी इत्यादि सम तिथि कुला कहलाती हैं और विषम तिथि प्रतिपद्, तृतीया, पञ्चमी, सप्तमी इत्यादि अकुला कहलाती हैं ।। ५६२||
सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति, शनि ये चारों ग्रह अकुल कहलाते है, और मंगल, शुक्र ये दोनों कुल कहलाते है । और बुधवार कुलाकुल
।। ५६२ ।।
शतभिषा, आर्द्रा, अभिजित, मूल ये नक्षत्र कुलाकुल कहलाते हैं, और मासों के नाम के नक्षत्र अर्थात् चित्रा, विशाषा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढा, श्रवणा, पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र, अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी ये नक्षत्र कुल संज्ञक तथा शेष नक्षत्र अर्था भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, अश्लेषा, हस्त, स्वाती, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवती, नक्षत्र अकुल कहलाते हैं || ५६४ ||
कुल नक्षत्र तिथि, दिन में यात्रा करें तो यायी का जय होता है। और कुल संज्ञक तिथि, नक्षत्र, दिन यात्रा करें तो स्थायी का जय होता है, और कुलाकुल, वार, तिथि, नक्षत्र में यात्रा करें तो दोनों राजाओं की आपस में सन्धि होती है ।। ५६५||
1 कुला for शृणु AA, Bh. 2. सूर्यो विधुर for सूर्यश्चन्द्रौ A.