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(2) मौमादित्यशनौ लमे जाता भवति दुर्मगा। सौम्यस्वोच्चे स्वके जाता सुभगा भवति भामिनी।।४३५॥ स्त्रीजातके च लग्नेशे ग्रहान्तरसुहृद्युते । उपपत्तिः श्रियां' वाच्या निश्चितं यौवनोद्धतौ ॥४३६।। मूतौं राह्वभौमेषु रामा' भवति वणिनी । एषु शुक्रद्वितीयेषु पतिमन्यं चिकीर्षति ॥४३७॥ नीचे भौमे शनौ वास्ते' राहावपि च तत्रगे" । आजन्म रमणेनैव' स्वेच्छाचारी पुनर्घना ॥४३८॥ सर्येऽस्ते स्वपतित्यक्ता नवोढेव कुजेऽथवा । करदृष्टे' शनौ नार्या वाई यौवने भवेत् ।।४३९।।
लन में मंगल, सूर्य, शनि रहें तो उत्पन्न कन्या कुत्सितयोनि वाली होगी और यदि शुभग्रह अपने उच्च स्थान में रहें तो कन्या सुन्दर योनि वाली होती है ॥ ४३५॥
लग्नेश यदि दूसरे किसी मित्रग्रह से युक्त हों तो निश्चय ही युवावस्था में कन्या की उत्पत्ति कहनी चाहिये ॥ ४३६ ॥
लग्न में राहु, सूर्य और मंगल यदि हों तो स्त्री विधवा होती है। इन में से यदि कोई ग्रह शुक्र के साथ बैठा हो तो वह दूसरे पति की इच्छा करती है ।। ४३७ ॥
मंगल, शनि यदि नीच स्थान में वा अस्त रहें और वहीं राहु भी रहे तो वह स्त्री आजन्म अपने पति के साथ स्वेच्छापूर्वक रमण करती है।४३८॥
सूर्य वा मंगल सप्तम स्थान में रहें तो नवोढा रहने पर भी वह अपने पति से परित्यक्ता हो जाती है । यदि दूसरे पापग्रह की दृष्टि शनि पर रहे तो यौवन में ही बुढ़ापा आजाता है ।। ४३६ ।।
1 स्त्रियां for श्रियो A. 2. वाच्यो for वाच्या A. 3. त: for तो A. यौवणेद्वतं Bh. 4. रण्डा for रामा Bh. b. चास्ते for वास्ते Bh 6 The text reads वभंवगे for च तत्रगे 7. मरणेनैव for रखनेव A, A1 8. The text reads स्वे for स्ते 9. दृष्टिः for TE A, A?