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(८०) न दृष्टं शनिभौमाभ्यां सोमदृष्टं च पञ्चमम् । तदा नूनं बुधैर्वाच्यं स्वकान्तादेव गुर्विणी ॥४२६॥ अथाशुभयुतोऽर्कः सेन्दुर्यदि जीवो न लग्नमिन्दुर्वा । जीवः सार्क नेन्दु पश्यति गर्भः परैर्जातः ॥४२७॥ यदि लग्नपजायापो खलु वीक्षेते परस्परं पूर्वम् । प्रीतिःपूर्णा खण्डा खण्डितदृष्टा" वधूवरयोः ॥४२८|| सौम्याहैः शुभारामा सुशीला भर्तृवत्सला । क्रूरग्रहैस्तु दुःशीला भर्तृविद्वेषिणी मता ॥४२९।। श्रीमद्देवेन्द्रसरीणां शिष्येण ज्ञानदर्पणः। विश्वप्रकाशकश्चक्रे श्रीहेमप्रभसारिणा ॥४३०॥
इति सप्तमस्थानप्रतिबद्धं जायाप्रकरणम् । यदि पञ्चमस्थान शनि और मंगल ग्रहों से न देखा जाय और चन्द्रमा की दृष्टि रहे तो वह स्त्री अपने पति से ही गर्भवती होती है ॥ ४२६ ॥
चन्द्रमा से युक्त सूर्य पापग्रह से युक्त हो वा बृहस्पति लम और चन्द्रमा को नहीं देखता हो अथवा सूर्य से युक्त चन्द्रमा को बृहस्पति नहीं देखता हो तो जार पुत्र कहें ।। ४२७ ॥
यदि लग्नेश और सप्तमेश परस्पर पूर्ण दृष्टि देखते हों तो स्त्री-पुरुष में पूर्ण प्रीति होती है और यदि खण्डित दृष्टि वाले हों तो प्रेम खण्डित रहता है ।। ४२८॥
लग्नेश और सप्तमेश यदि सौम्यग्रहों से देखा जाय तो स्त्री सुशीला और भर्तृप्रिया होती है। यदि वे पापग्रहों से देखा जाय तो वह पतिद्वेषिणी होती है ।। ४२६ ।। ___श्री देवेन्द्रसूरि के शिष्य श्रीहेमप्रभसूरि ने विश्वप्रकाशक और शानदर्पण इस प्रन्थ को रचा ॥ ४३०॥ ___ 1. पूर्णा for पूर्वम A. 2. पूर्णा प्रीति: for प्रीतिःपूर्णा A. 3. दृष्ट्वा for दृष्टा A.