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पत्रमाधिपतिर्लने सुते लमेशचन्द्रमाः। तदा पुत्रः समादेश्यः पृच्छकस्य बुधैः किल ॥३६॥ पन्द्रयुक्तक्षिते गर्ने सौम्ययुक्तेक्षितेपि च । उच्चस्थेऽम्युदिते तत्र पुण्यापत्यं प्रजायते ॥३६१॥ लम शुभग्रहैर्जाते शुभस्थाने शुभ ग्रहे। आये सुतेऽथवा राज्ये पुष्टे गुरौ सुतं वदेत् ॥३६२॥ सौम्याश्चेत् पंचमे स्थाने बलवांस्तनयो भवेत् । करेविजीयमानोऽपि प्रियते नात्र संशयः ॥३६३॥ एकं वा द्वेऽथवाऽपत्ये भविष्यतोत्र संशये । द्विस्वभावं विलग्नं चेत्तत्र गर्ने शुभा ग्रहाः ॥३६४॥ तदापत्यद्वयं वाच्यं शुद्धलमे बुधैः स्फुटम् । चरे बहूनि जायन्ते स्थिरे त्वेकं वरं मतम् ॥३६५।।
पञ्चमेश लग्न में रहे, लग्नेश और चन्द्रमा पञ्चमस्थान में रहे तो प्रश्न कता को पुत्र अवश्य होवे ।। ३६० ।।.
गभस्थान चन्द्रमा से युक्त वा दृष्ट हो और शुभ ग्रह से युक्त, दृष्ट हो और वे उदित होकर उच्चस्थित होवें तो पुण्यवान सन्तान का जन्म कहना चाहिये ॥ ३६१ ।।
लग्नस्थान में शुभग्रह हों और शुभस्थानों शुभग्रह रहें ग्यारहवें, पांचवें वा नवम स्थान में पुष्ट गुरुं हों ता अवश्य पुत्र कहना चाहिये ।। ३६२ ॥
शुभप्रह यदि पंचम स्थान में रहें तो अवश्य बलिष्ठ पुत्र की उत्पत्ति हो । यदि वे ही पापग्रहों से जीते गये हों तो उसकी मृत्यु मी अवश्य होवे ॥ ३६३ ॥ __एक वा दो पुत्र होंगे ऐसे प्रश्न में यदि द्विस्वभाववाले लग्न हों तो और शुभ प्रह गर्भस्थान में हों ।। ३६४ ।।
तो पुत्र द्वय कहना । चर राशि लग्न रहे तो बहुत से पुत्र होवें। स्थिर लग्न में एक पुत्र कहना चाहिये ।। ३६५ । ___1. ध्रुवम् for किल A. 2. मन्दे for ग: A. B. सुंत for शुम A 4. शुभग्रही A. 6. The text reads भविष्यतो for भविष्यस्य A, A1.