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क्रियते केवलादर्शी निधिसिदिप्रकाशकृत् । श्रीमदेवेन्द्रशिष्येण श्रीहेमप्रभारिणा ॥२९९।।
इति चतुर्थभावे शेवधिप्रकरणं सम्पूर्णम् ।
ज्ञानचारित्रसद्धीजं सिद्धिद्वारेऽपि गच्छताम् । गणेशलब्धिविस्तीर्ण पक्वान्नभोजनं वे ॥३०॥ लग्न तुर्येऽथवा* लाभ सौम्यखेचरसम्भवे । भोज्यं भवति पृच्छायां पटरसास्वादसुन्दरम् ॥३०१।। गुरौ लमऽथवा शुक्र पृच्छालग्न गते सति । अवश्यं लभ्यते भोज्यमटव्यामटताऽपि हि ॥३०२।।
शनी राहौ च लग्नस्थं रविदृष्टऽथवा युते ।। ... न लभ्यते निजे गेहे शस्त्रघातो भवेत्स्फुटम् ॥३०॥
निधि को बतलाने वाला और केवल आदर्शमय ग्रन्थ देवेन्द्र के शिष्य श्रीहेमप्रभसूरि ने बनाया है ।। २६६ ।।
सिद्धिद्वार में जाने वाले पुरुष के ज्ञान और चारित्र का सद्वोज रूप पकानभोजन के विषय में श्रीगणेश के प्रासाद से विस्तीर्ण कहता हूँ ॥ ३०॥ ..बुध अथवा कोई अन्य शुभ ग्रह लग्न चतुर्थ अथवा लाभस्थान में हो तो प्रश्नकाल में भोजन छः रसों के आस्वाद से सुन्दर होता है ॥३०२।।
प्रश्नकाल के लग्न में गुरु वा शुक्र हों तो जंगल में भी घूमने वाले मनुष्य को अवश्य भोजन मिले ।। ३०२ ।।
शनि, राहु यदि लग्न मे हा श्रार सूर्य की दृष्टि पड़े अथवा एक स्थान में हों तो अपने घर में रहने पर भी भोजन नहीं मिलता और किमी शस्त्र आदि से चोट होतो है ।। ३०३ ।।
- 1. निधि for शेवधि A. A1 2. गच्छतः tor गच्छताम् A, A1 3. सझानं for पकान्न A. 4. तथा for ऽथवा A, B मते for गते
A. 6. मरण्यमध्यगैरपि for मटण्यामटतापि हि A, A1 7. अषम् for स्फुटम् A.