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(५६) निधीशलग्ननायौ द्वौ मध्यराशिस्थितौ यदि । तदा द्रव्यं गृहस्यान्तःकोणादिष्वेव संस्थितम् ॥२८॥ यदा लमेशतुर्ये शौ बाह्यराशिस्थितौ यदि । गृहाबहिर्षनं वाच्यं प्रांगणादिभुवि स्थितम् ।।२८८।। केन्द्रगतैहर्वाच्यं सर्वाः पूर्वादयो दिशः । केन्द्रगे चन्द्रजे ज्ञेयं गृहस्योचरदिस्थितम् ।।२८९॥ गुरावीशानभागे च रखौ पूर्वदिशि स्थितम् । शुक्रऽध्याग्नेयदिगकोणे कुजे दक्षिणदिकश्रयम् ॥२९०॥ राहो नैऋत्यकोणे च शनौ पश्चिमदिगस्थितम् । चन्द्रे वायौ शनी गर्ने निक्षारे राहुसंस्थिते ।।२९१।। उच्चकेन्द्रस्थखेटेषु घलयुक्तेषु सर्वतः । लक्षसंख्यो निधिः सत्यं चन्द्रदृष्टौ स्वहस्तगः ॥२९२॥
लग्न से सप्तम तक की राशियां अाभ्यन्तरिक कहलाती है। सप्तम से प्रथम तक बाह्य राशि कही जाती हैं ।।२८७॥
निधोश और लग्नेश यदि मध्यराशि में हो तो घर के बीच किसी कोने आदि में द्रव्य मिलना चाहिये ।।२८८॥
लग्रंश और चतुर्थेश यदि बाह्य राशियों में रहे तो घर से बाहर माँगन प्रादियों में धन कहना चाहिये ॥२८६।।
केन्द्रस्थ ग्रहों से पूर्वादि दिशाओं का निर्णय करना । यदि बुध केन्द्र में रहे तो धन घर की उत्तर दिशा में समझना ॥२६॥ ___ यदि गुरु केन्द्र मे हो तो ईशान कोणा में, रवि केन्द्र में हो तो पूर्वदिशा में, शुक्र केन्द्र में हो तो आग्नेय कोण में, मंगल केन्द्र में हो सो दक्षिण दिशा में निधि होती है ।।२६१।।
राहु केन्द्र में हो तो नैऋत्य कोण, शनि केन्द्र में हो तो पश्चिम दिशा तथा किसी गर्त में, चन्द्र केन्द्र, में हो तो वायव्य कोण में निधि होनी चाहिये ॥ २२ ॥
1. afout: for afai A. 2. odo for 06016 A. 3. The text reads eys, which does not fit in with the metre'