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________________ ___ समत्व दृष्टि' के रूप में 'पारस' पत्थर का गुणगान हमेशा से होता रहा है। पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। सूर ने भी लिखा है कि 'पारस गुन अवगुन नहीं, चितवै कंचन करत खरो।' आचार्य महाप्रज्ञ रत्नकाकिणी के संदर्भ में लिखते है कि - 'पारस का पा स्पर्श लोह की, काया ही बदलेगी। ऋ.पृ.-170 और :- 'पारसमणि का स्पर्श प्राप्त कर, मिट्टी पुण्य हिरण्य बने।' ऋ.पृ.-44. यहाँ कवि ने 'पारस' के आधिक्य गुण को व्यक्त किया है। पारस के स्पर्श से 'लोहा' स्वर्ण के रूप में परिवर्तित होता है किन्तु उक्त पंक्ति में 'मिट्टी' को स्वर्ण परिवर्तन के रूप में दिखाकर पारस को विस्तृत प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है। आचार्य महाप्रज्ञ ने कहीं-कहीं संख्यावाची प्रतीकों का भी प्रयोग किया है जो लोकजीवन में आये दिन व्यवहृत होते हैं। युद्ध के परिप्रेक्ष्य में निम्नलिखित कथन प्रयोजनीय है : 'जय का निश्चय है सबको सोलह आना। निश्चित होगा सार्थक केसरिया बाना।' ऋ.पृ.-181. यहाँ 'सोलह आना' परिपूर्ण विश्वास एवं 'केसरिया बाना' शौर्य को व्यक्त करता है, जिसका व्यवहार समाज में परंपरागत है। उक्त 'प्रतीकों' के अतिरिक्त सामान्य, परम्परागत एवं लोक प्रचलित प्रतीकों का आचार्य महाप्रज्ञ ने खूब प्रयोग किया है, जैसे : पशु-(मूर्खता)-शिक्षा-दीक्षा-शून्य मनुज पशु।। ऋ.पृ.-68. छुई-मुई-(मुरझाना)-बनी मनःस्थिति छुई-मुई। ऋ.पृ.-41. असि को म्यान–(मर्यादित जीवन) मर्यादा से निश्रित सब जन, प्राप्त हुआ है असि को म्यान। ऋ.पृ.-69 मध्यान्ह-(जीवन का पूर्ण विकास)-बहूत दूर मध्यान्ह है, प्रभात-(जीवन का प्रारंभ)-चाक्षुष अभी प्रभात। ऋ.पृ.-99. चिंतामणी-चिंताओं का शमन करने वालीधन्य है हम रत्न, चिंतामणि अहो प्रत्यक्ष है। ऋ.पृ.-127. | 61
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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