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________________ यहाँ 'चातक' एवं 'चकोर' प्रतीक का प्रयोग भरत के लिए तथा 'भोर' एवं 'शशधर' प्रतीक का प्रयोग ऋषभ के लिए किया गया है। पिता के चरणों में पुत्र की आसक्ति स्वभाविक है। इस आसक्ति एवं समर्पण का प्रस्तुतिकरण अनूठा है। दूसरी ओर युद्ध के परिदृश्य में 'चकोर' और 'चातक' 'चन्द्र' और 'भोर' बाहुबली और भरत के परिप्रेक्ष्य में नया ही अर्थ देते हैं – “दोनों प्रीतिभाव से नहीं शत्रुभाव से युद्ध के मैदान में एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं। :-- . न च चकोर का मिलन चंद्र से, नहीं मिली चातक को भोर। ऋ.पू.-276. 'चकोर' का 'चंद्र' से और 'चातक' का 'भोर' से प्रीति स्वाभाविक है किन्तु यह भी कैसी विडम्बना है कि प्रेमी अपने प्रियपात्र से नहीं मिल पाते। भरत ज्येष्ठ है और बाहुबली कनिष्ठ। इसलिए यहाँ पर 'चकोर' और 'चातक' के रूप में बाहुबली तथा 'चंद्र' और 'भोर' के प्रतीक के रूप में भरत को रूपायित किया गया है। प्रतीक के क्षेत्र में यह विशुद्धतः नवीन प्रयोग है। कहीं कहीं तो लोकजीवन में व्यवहत सामग्री को कवि ने स्वाभाविक रूप से प्रतीकों के रूप में गढ़ा है, वहाँ कवि की दक्षता का लोहा मानना पड़ता है, जैसे : विद्या साधित गदा मथानी, चक्री-सेना मंथन पात्र। किया बिलौना हुआ विलोड़ित, योद्धा गण का उर्जित गात्र। ऋ.पृ.-261. विद्याधर रत्नारि के युद्ध कौशल का वर्णन है जिसमें गदा को मंथानी, चक्रीसेना को 'पात्र' तथा योद्धाओं के मथित शरीर को बिलौना के प्रतीक से व्यक्त किया गया है। यह "बिलौना' ही प्रतिपक्षियों के शरीर की वह ऊर्जा है जिसे रत्नारि अपने भंयकर आक्रमण से निःसत्व कर प्राणान्त कर देता है। जिस प्रकार 'मछली' पानी से बाहर होने पर तड़पने लगती है, वैसे ही बाहुबली की सेना के सामने भरत की सेना व्याकुल है जिसे कवि ने 'जल' से निर्वासित 'मीन' के प्रतीक से व्यक्त किया है। यह प्रयोग परम्परागत है : और हमारी सेना प्रभुवर! है जल से निर्वासित मीन। ऋ.पृ.-262. | 59
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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