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मानवीकरण :
प्रकृति चेतना में मानवीय चेतना का आरोपीकरण मानवीकरण है, जैसे:1) सुरभि-पवन संगीत गा रहा,
पल्लव-रव की शहनाई, किंशुक कुंकुम रूप हो गया, पुष्पों ने ली अंगड़ाई।
ऋ.पृ.-35. उक्त उदाहरण में 'पवन के संगीतमय गायन' एवं 'फूलों की अंगड़ाई लेने' की क्रिया में मानवीकरण है।
2) इतने में उस महाकाल ने, अपना पंजा फैलाया। ऋ.पृ.-42.
महाकाल अदृश्य है, उसके द्वारा 'पंजा फैलाने' की क्रिया में मानवीकरण है क्योंकि पंजा फैलाना मानव की क्रिया है।
अन्य उदाहरण :-- 3) अनिल वेग आहत जीवन में, उत्थित एक तरंग।
सक्षम वात, किंतु जल कैसे, सह सकता है व्यंग ? ऋ.पृ.-79.
किसी पर व्यंग्य करना मानवीय क्रिया है। इस प्रकार 'जल' का 'व्यंग्य' के लक्ष्य से मानवीकरण है।
4) मंद-मंद समीरण सुरभित कर-कर विटपि-स्पर्श,
___ आगे बढ़ता लगता तरू को, इष्ट वियोग प्रकर्ष। ऋ.पृ.-79. उक्त उदाहरण में 'समीर' व 'विटप' का मानवीकरण किया गया है।
(8)
विरोधाभास :
जहाँ वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध के आभास का वर्णन किया जाय वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे :
1) तोडू ममता का तटबंध, जिससे बनता सनयन अंध। ऋ.पृ.-82.
उक्त उदाहरण में बताया गया है कि ममता के प्रभाव से 'सनयन' भी 'अंधा' हो जाता है, यहाँ विरोध का आभास तो हो रहा है। प्रत्युत कथन का समर्थन इस रूप में हो रहा है कि 'ममता' का बंधन अटूट होता है।
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