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मुक्ता का आकांक्षी होगा
मानस सरवर का वर हंस ।
ऋ. पृ. 288 उक्त प्रतीकार्थो के अतिरिक्त यहाँ 'अमृत तत्व का प्रतीकार्थ प्रेमतत्व मानसरोवर का ऋषभ वंश एवं 'हंस' का प्रतीकार्थ बाहुबलि से भी लिया जा सकता है।
युद्ध के सन्दर्भ में सेना और भरत के लिए क्रमशः 'बादल' और 'हंस' प्रतीक का नवीन प्रयोग भी कवि ने किया है । युद्ध स्थल पर सेनाओं के मध्य भरत वैसे ही उपस्थित होते हैं जैसे आकाश में बादलों की पंक्तियों को चीरकर सूर्य (हंस) उपस्थित होता है
देता है ।
चीर बादलों की अवली को,
अंतरिक्ष में चमका हंस
दूरी का अवरोध मिटाकर
आया अग्रज नृप अवतंस |
ऋ. पृ. 275
इस प्रकार ऋषभायण में प्रतीकात्मक बिम्बों का सफल प्रयोग दिखाई
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7. मानवीकरण
अचेतन जड़ प्रकृति व पदार्थों की चेतन के अनुरूप कल्पना करना, मानवीकरण है। इसमें मानव अथवा चेतन प्राणी के क्रिया व्यापारों का आरोपण किया जाता है। फूलों के हँसने में तथा पर्वत के देखने में मानव की क्रियाओं का दृश्य बिम्बित होता है । मानवीकरण की समस्त प्रभावोत्पादकता बिम्ब नियोजन के कारण ही होती है। सिद्धान्तः भले ही छायावादी युग में मानवीकरण विधा का प्रारम्भ हुआ, व्यवहारतः प्राचीन काल से ही कविगण प्रकृति का मानवीकरण करते आए हैं । मानवीकरण का चित्रण प्रमुखतः कवियों ने तीन रूपों में किया है। प्रथमतः कवियों
किसी अचेतन या निर्जीव पदार्थ को चेतन प्राणी अथवा व्यक्ति के समान प्रकट किया है। यह एक प्रकार का मानव रूपक है, जिसमें अचेतन को मानवोचित गुणों से युक्त करके सचेतन जैसा कहा जाता है। द्वितीयतः, प्राकृतिक वस्तुओं को चेतना
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